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Dr. Akshita Aggarwal

Comedy Others

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Dr. Akshita Aggarwal

Comedy Others

चौबीस घंटे

चौबीस घंटे

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यूंँ तो रोज़ मिलते हैं, 

यह चौबीस घंटे।

पर,रोज़-रोज़ होते हैं,

ज़िंदगी में नए-नए टंटे। 

उन्हीं को सुलझाते हुए, 

ना जाने कैसे बीत जाते हैं, 

यह चौबीस घंटे? 

अगले दिन फिर, 

वही कहानी दोहराते हैं, 

यह चौबीस घंटे।


सभी के लिए, 

अलग-अलग मायने रखते हैं। 

यह चौबीस घंटे।

एक माँ के लिए तो, 

अपनी संतान का ध्यान रखते-रखते ही, 

ना जाने कब बीत जाते हैं। 

यह चौबीस घंटे। 

एक पिता के लिए तो,

अपने परिवार के, 

भरण-पोषण के लिए कमाते-कमाते ही, 

ना जाने कब बीत जाते हैं।

यह चौबीस घंटे। 

एक छोटे भाई के लिए तो, 

अपनी बड़ी बहन को, 

तंग करते-करते ही,

ना जाने कब बीत जाते हैं। 

यह चौबीस घंटे।

एक बड़ी बहन के लिए तो,

अपने छोटे भाई की गलतियों पर, 

पर्दा डालते-डालते ही,

ना जाने कब बीत जाते हैं।

यह चौबीस घंटे। 

एक अध्यापक के लिए तो,

सारा दिन,

एक मोमबत्ती की तरह खुद जलकर,

अपने विद्यार्थियों में,

ज्ञान की रोशनी का प्रकाश बांँटते-बांँटते ही, 

ना जाने कब बीत जाते हैं। 

यह चौबीस घंटे।

एक चिकित्सक के लिए तो, 

मरीजों की ज़िंदगी बचाते बचाते ही, 

ना जाने कब बीत जाते हैं। 

यह चौबीस घंटे।

सभी के लिए, 

अलग-अलग मायने रखते हैं। 

यह चौबीस घंटे।


सोचो कभी मिले जो,

फुर्सत में यह चौबीस घंटे। 

जब ज़िंदगी में, 

ना हो कोई भी टंटे।

तो क्या करोगे, 

आप इन चौबीस घंटे?

खुद के लिए बिताओगे या 

दूसरों पर भी थोड़ा-सा प्यार लुटाओगे। 

इन चौबीस घंटे।


अगर मुझे मिले, 

ज़िंदगी में कभी ऐसे चौबीस घंटे।

तो सच है कि, 

खाने और सोने में ही बीत जाएंँगे।

फुर्सत के यह चौबीस घंटे।


अब आप बताओ, 

आप कैसे बिताओगे? 

कभी जो मिले, 

फुर्सत में यह चौबीस घंटे। 

नहीं दिया जवाब तो, 

मैं खाऊंँगी आपका दिमाग। 

चौबीसों घंटे।

चौबीसों घंटे।



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