मानवीय मूल्यों की माला
मानवीय मूल्यों की माला
अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़्यादा है कहीं कुछ कम है
अब जी के बहलने की है एक यही सूरत
बीती हुई कुछ बातें हम याद करें फिर से
सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है
दरिया चढ़ते हैं उतर जाते हैं
हादसे सारे गुज़र जाते हैं
छाए हुए थे बादल लेकिन बरसे नहीं
दर्द बहुत था दिल में मगर रोए नहीं
ख़ुशबू का जिस्म, साये का पैकर नज़र तो आए
दिल ढूँढ़ता है वो मंज़र नज़र तो आए
दिल में रखता है न पलकों पे बिठाता है मुझे
फिर भी इक शख़्स में क्या-क्या नज़र आता है मुझे
ऐसे हिज्र के मौसम कब-कब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे
आईनों को तोड़ के पछताओगे
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
ये हसरत है कि इन आँखों से कुछ होता हुआ देखें
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
इस पल भी अगर भूल से हम सो गए होते।

