मृंदग
मृंदग
कहना तो तुमने भी चाहा
मैं भी कहना चाहता था
बात-बात में बातें बातें
अनब्याही रातों में।
जब चंदा भी आ जाता था
धवल रात में छ्त के ऊपर
कुछ चांदनी मुट्ठी में भर
मैं इतराती थी
तब मेरी दुनिया छोटी थी
छोटी छोटी चिंताएं थी
छोटी छोटी ख्वाहिश थी
अब सारा मंजर है बदला
बाहर बदला अंदर बदला
तेरी किस्सागोई सारी
मेरे जीवन का अंग हो गया
जब से तुम्हारा संग हो गया
मेरा मन मृंदग हो गया
श्याम था पहले सब कुछ
सब कुछ अब सतरंग हो गया।

