साड़ियां
साड़ियां
जीवन की व्यस्तता से
आज कुछ पल
फुर्सत के मिले
खोल डाला
साड़ियों से भरा
एक बड़ा सा बॉक्स
जिसे मैंने कई वर्षों से
सहेज कर रखा है।
हर अवसर की अलग साड़ी।
लाल, पीले, हरे, नीले,
ब्राउन, काले, अनेक रंगों में,
बनारसी, कांजीवरम,
सूती, रेशमी,
बांधनी, पैठणी,
शिफॉन, जॉर्जेट
अनेकों नाम,
अलग अलग डिज़ाइन
फूलदार, धारीदार, ज्योमेट्रिकल, प्लेन, चेकदार।
अपनी शादी से लेकर
अपने बच्चों तक की शादियों में पहनी गई साड़ियां,
कुछ ऐसी साड़ियां जो
'कभी पहनूंगी कैटेगरी'
पर पहनी कभी नहीं
क्योंकि वह इतनी
भारी-भरकम साड़ियां हैं
केवल अपने घर की
शादियों में ही
पहनने लायक है।
सारी साड़ियां
मैंने बाहर निकालीं।
शादी की साड़ी
सुर्ख लाल रंग की,
गोटे किनारी वाली,
सच्चे मोती जड़ी
जिसे पहन कर मैं स्वयं ही
अपने रंग रुप पर
मोहित हो गई थी।
पहले करवा चौथ पर मिली
गुलाबी साड़ी
अगर पहन लूँ
मुझे यकीन है, आज भी
बहुत सुन्दर लगूंगी
पहला बेबी होने पर
मुझे मायके से मिली
खूबसूरत ब्लू रंग की
कढ़ाई वाली साड़ी
आज भी दिल में
हलचल मचा देती है।
एक तो उन दिनों
चेहरे का नूर
ऊपर से बढ़िया साड़ी
वाह!
हर तीज त्योहार,
रिश्तेदारों की शादियों,
समारोहों व विशेष अवसरों पर खरीदी गई साड़ियां।
हर साड़ी के साथ
एक अंतरंग रिश्ता।
मार्डन जेनरेशन क्या जाने
साड़ी के साथ भावनात्मक
जुड़ाव और लगाव क्या होता है।
जीवन के इस मोड़ पर,
बुद्धि और विवेक का कहना है
अब क्या करेगी
इन साड़ियों का।
मन कहता है
सच है नहीं पहनी जाएंगी
निश्चय ही
कुछ तो बांट दूंगी
पर कुछ साड़ियां
मेरी यादों में ऐसी रची बसी हैं
जिस दिन इन साड़ियों को
घर से निकाल दूंगी
मैं खुद भी बिखर जाऊंगी।
मैं और मेरी साड़ियां
एक दूसरे के प्राय।
साड़ी मेरी जान
साड़ी मेरी शान।