STORYMIRROR

Chandrakala Bhartiya

Comedy

4  

Chandrakala Bhartiya

Comedy

"होली का रंग, भंग के संग "

"होली का रंग, भंग के संग "

1 min
330


होली पर चढ़ गयी, मेरे बलम को भंग, 

सुबह सवेरे उठ, बजा रहे, थाली कटोरी गंज, 

कर रहे उछल- कूद, मचा रहे हुड़दंग, 

नशा चढ़ गया बलम को, पीली उनने भंग।।

होली पर चढ़ गयी , मेरे बलम को भंग।।


मस्ती में झूम रहे, लेकर मुझको संग।

डाल रहे सब पर, भर -भर लोटा रंग , 

उल्टा- सुल्टा गाकर ,नाच रहे हैं बलम।

बेसुरा बजा रहे, ले हाथों में मृदंग।।

होली पर चढ गयी मेरे बलम को भंग।।


राहगीरों को बुला रहे , सीटी बजा बेरंग, 

लाल, पीला, हरा ,नीला लगा रहे हैं रंग, 

इतने में आई पड़ोसन, लग

ा हुआ था रंग, 

पकड़ा हाथ पिया ने, निकट अपने बैठाया, 

समझे थे वे, मैं हूं उसके संग।।

होली पर चढ गयी, मेरे बलम को भंग।।


घबराई पड़ोसन, चीखी-चिल्लाई, शोर मचाई।

देख माजरा, पिया का उड़ गया सारा रंग।

क्षमा याचना करते, पैर लिए पकड़।

देख पिया का हाल,रह गई मैं तो दंग।।

होली पर चढ़ गयी, मेरे बलम को भंग।।


नशा तुरंत उतरा, पी थी जो भंग

माफी मुझसे भी मांगी, लगा लिया अंग| 

हंसते- हंसते हो गए, हम सब लोट पलोट, 

कहा पिया ने, होली है भई होली है।।

बुरा न मानो होली है।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy