"सुख- दुख जीवन के दो पहलू "
"सुख- दुख जीवन के दो पहलू "
सुख -दुख जीवन के दो पहलू।
एक जाता, एक आता।
क्रम में यह शुरू नित्य ही रहता।
परिवर्तन सृष्टि का नियम है।
भूल न जाना इसे तुम यारों।।
जिंदगी किसी की, एक जगह,
कभी नहीं ठहरती।
खुश नहीं रह सकता कोई, सारी जिंदगी।
गमों की धूप - छाॅंव, झांकती बीच-बीच।
खुशियों का मोल, तभी समझ आता
जब दुख पैर पसारता।।
बीत जाते गमों के दिन भी।
धैर्य, संयम ,आत्मविश्वास बनाए रखो।
दामन न इनका तुम छोड़ो।
जैसे काली, घनी अंधेरी ,रात के बाद,
सुनहरी , चमकीली धूप अवश्य आती।
वैसे ही दुखों की काली छाया छठ जाती।
सुखों की सुहानी सुबह प्रकाश जब फैलाती। ।