इश्क़ का चक्कर
इश्क़ का चक्कर
इश्क़ का चक्कर बड़ा सुहाना, पर इसको न आजमाना ।
सफल है गर तो जिन्दगी का,बन जाता ये खास अफसाना ।
वर्ना सिर पर जूते पड़ते ही, भूल जाता है सारा इश्क़ाना।
इश्क़ीभूत ने अच्छे अच्छों की, ऐसी तैसी कर छेड़ा नया तराना ।
विश्वामित्र ने मेनका को देखा ,भूले सारा ज्ञान खजाना ।
शांतनु ने सत्यवती को देखा , याद न रहा कुल व राजघराना ।
नारद की जगहँसाई को, मानस प्रसंग में किसने नहीं जाना ।
दशरथ के इश्क ने तो दे दिया, मौत का ही नजराना ।
कभी कभी इश्क़ का चक्कर, घर को ही बना देता है मयखाना ।
तौबा कर मेरे यारा, छोड़ ,इस फसाने को प्रभुशरण में दिल ही बहलाना ।