इंद्रा - मेरी दोस्त
इंद्रा - मेरी दोस्त
मेरी सहेली का दुनिया से चले जाना
मुझे बुजुर्गियत का एहसास करा गया।
सोचती थी मैं,
कभी भी दोस्ती में बुढ़ापा नहीं ठहरता।
पर उसके एकाएक चले जाने से,
ज़िंदगी जीने का हौसला चला गया।
वो पुरानी शरारतें किसके संग दोहराई जाएगी?
जो हँसती थी साथ मेरे, वो मेरा 'साथ' चला गया।
मेरी जिंदगी का हर एक पन्ना था पढ़ा उसने,
पूरा बचपन जिया हमने,
साथ हंसते - खेलते पता ही नहीं चला
कब पैतालिस सावन पार हुए।
मेरी राजदार, मेरी खुशी और गम में हमेशा शरीक,
मेरी इंद्रा, मेरी एकमात्र सखी,
कक्षा एक से दसवीं तक एक ही स्कूल,
फिर अलग रास्तों पर चलते हुए भी,
मिलते रहना, घूमना फिरना और
उम्र के हर पड़ाव का आनंद लेना,
हर दुआ में उसके शामिल थी मैं,
चाय समोसे के साथ ढेरों बातें करना।
नजरों से ओझल आज ढूंढती हूँ उसे
हर रोज़ यादों के गलियारों में ।
एक रोज यूँ ही किसी ने अनजाने में
मुझे 'आरू' कह कर भेजा सन्देश,
एक पल लगा मानो इन्द्रा ही छुप कर खेल खेल रही है,
दूर नहीं मुझ से विशेष।
भ्रम टूटा, आँखें भर आयी,
बचपन में वही सिर्फ पुकारती थी इस नाम से,
नहीं गवारा मुझे सुनना मेरी दोस्त का
प्यार से दिया नाम किसी और के जुबाँ से।
आज मैं अकेली हूँ, छोड़ कर चली गयी वो
मेरे मन में अखंड दोस्ती का दीया जला के।