रेल यात्रा
रेल यात्रा
1 min
384
रेल यात्रा का मजा ही कुछ और होता था,
खास कर जब कोयला इंजन हुआ करता था,
छुक छुक करती सीटी बजाती ,
चलती थी रेलगाड़ी,
गांव जाने में लगते थे दो दो दिन,
चेहरे हो जाए थे काले भुजंग ,
उड़ाती थी रेल कोयला और धुआं ,
एक संग ,।
मूंगफली वाले सुनाते थे तरंग ,
देहाती गानों के संग,
एक अलग ही जमता था रंग,
अलग अलग लोगो के संग।
