मोबाइल : एक अजब दुनिया... !
मोबाइल : एक अजब दुनिया... !
सुनने में कटु है, मगर सत्य है !!!
आज का आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान
इस क़दर इंसानों पर हावी हो चुका है कि
इंसान स्वयं को एक अलग
दुनिया में बसा चुका है।
कोई माने या न माने,
कहीं न कहीं आज का आधुनिक मानव
तकनीकी स्रोतों का ग़ुलाम बन चुका है।
ऐसा शायद बहुत कम ही लोग होंगे
जो अपनी मोबाइल की
अजब दुनिया में नहीं खो चुके होंगे।
ऐसा अजब समय आ चुका है
कि लोग, विशेषकर युवावर्ग
मोबाइल से अधिकाधिक समय जुड़कर
अपनी एक अलग दुनिया ही
बसाए हुए नज़र आते हैं...!
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं !
आज के त्वरित गतिवेग भरी दुनिया में
आर्थिक रूप में सक्षम लोग
सबकुछ बटन दबाकर ही पा लिया करते हैं।
ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
एक तरफ हमें तकनीकी शिक्षा की
उन्नति का अनन्य 'उदाहरण' देखने को मिलता है,
तो दुसरी तरफ (प्रायः) युवावर्ग मोबाइल की
'न छूटने वाली' लत से
एक क़शमक़श एवं
(दिमागी) जद्दोजहद भरी
ज़िंदगी के बीच फँसे हुए
लाचार-सा नज़र आते हैं... !
निश्चित रूप में कहीं न कहीं,
तकनीकी विकास, विशेषतः युवावर्ग को
अपनी तरफ इतनी तेज़ी से
आकर्षित कर रहा है कि
आज हरेक (आर्थिक रूप में) समर्थ
परिवार में अंदरूनी सच्चाई यही है
कि परिवारजन एक दूजे से
तुलनात्मक रूप में कम
(वार्तालाप किया करते हैं),
बल्कि मोबाइल की दुनिया में
ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बिताया करते हैं...।
क्या इसी का नाम ज़िंदगी है ?
ऐसी अवस्था में हम इंसान
और कितनी दूर चल पाएंगे ?
ऐसे कैसे पारिवारिक माहौल का
पुनः सामान्य अवस्था में
प्रत्यावर्तन संभव हो पाएगा...?
ये निस्संदेह गौर करने वाली बात है।
