वाहहह टमाटर
वाहहह टमाटर
भयावह, निर्जन, घनी अंधेरी थी रात
उस पर घनघोर- मूसलाधार बरसात
सुनसान गली कोई न था मेरे साथ
झींगुरों कुत्तों की डरा रही थी आवाज
लाइट गुल थी सब तरफ अंधेरे का था राज
रक्त जम रहा था डर से ,धड़कनें भी थी नासाज़
मैंने मन में कुछ सोच कर लगाई जोर से आवाज
टमाटर लो दस रूपये किलो रेट बस ये आज
जादू सा हो गया जैसे, सब घरों में हो गया प्रकाश
सब दरवाजे खुल गए बाहर आ गए सब लोग बाग
सब ढूंढ रहे थे टमाटर वाले को इधर उधर बदहवास
मैंने चुपचाप गली से निकल गया होकर बेखौफ बिन्दास
टमाटर के जाऊँ वारे न्यारे जो बचा लिया मुझे आज।
