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Poonam Arora

Abstract Classics

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Poonam Arora

Abstract Classics

वक्त वक्त की बात

वक्त वक्त की बात

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वक्त वक्त की बात-----

सब वक्त वक्त की यह बात है

कल था हमारा ,तुम्हारा आज है

तुम्हारा अंश जबसे अंकुरित हुआ हमारी कोख

तुम्हारा अस्तित्व पल्लवित हुआ हमारे ही उपवन की गोद


तुम्हारे अक्स में प्रतिबिम्बित होता हमारा ही स्वरूप

तुम्हारी तोतली बातों में पाते थे अनिर्वचनीय सुख

तुम्हारे हर एक इच्छा को रखते थे सिर आँखो पे

तुम्हारे सपनों को अपना समझ सजा रहे थे ख्वाबों में


तुम्हारे लिए फर्ज को कभी समझा नहीं अपनी लाचारी

हँस के झेले संघर्ष ,कष्ट और थकन भरी जिम्मेदारी

सब थकान विषाद मिटा देता था तुम्हारा चुम्बन -आलिंगन

तुम्हारी एक आह से हो जाता ह्दय में कंपन -स्पंदन


हम सहते रहे तपिश धूप, देने को तुम्हें शीतल छाँव

तुम्हारे उज्जवल कल के लिए हमने खोए कितने आज

सफलता के उत्कर्ष को पाकर बन गए उच्च अफसर

गर्वित गौरवान्वित होकर हमारा मस्तक हुआ उन्नत


यौवन का स्फुटन हुआ, खुद पसंद की तुमने लड़की

उसको ही सौभाग्य मान हम बना लाए लक्ष्मी

अब तो सारा वक्त था समर्पित उसे देने को वक्त

हमारे लिए नहीं शेष था तुम्हारा कीमती वक्त


अपने ही कमरे को तुमने बना लिया था घर

सुबह शाम वहीं होती, वहीं गुजरते दिन पहर

हम अपने कमरे में देखते रहते तुम्हारी राहें 

तुम्हारे आलिंगन स्पर्श को तरसती रहती हमारी बाँहें


हम अकेले में बैठ ताका करते थे शून्य

तुम्हारी संवेदनाएं कैसे हो हो गईं इतनी भावनाशून्य

कभी तुम्हारी नन्ही ऊँगली को थामने बढ़ते थे कितने हाथ

आज हमारी काँपती उँगलियाँ ढूँढ रहीं तुम्हारा हाथ


उनको नहीं मिल पाया तुम्हारी इक ऊँगली का भी साथ

वक्त बदलता अपना वक्त, सब वक्त वक्त की बात।


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