अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति
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कभी कुछ कह जाती हूँ
कभी चुप रह जाती हूँ
कभी विरोध कर देती हूँ
कभी सह जाती हूँ
कभी अभिव्यक्त कर देती हूँ
कभी भावों में बह जाती हूँ
कभी बेखौफ हो उठाती आवाज़
कभी निशब्द हो जाती हूँ
आसान नहीं है नारी होना
संतुलन बिठाना पड़ता है
रिश्तों को जिताने के लिए
खुद को अक्सर हराना पड़ता है
अभिव्यक्ति की आजादी है तो क्या
उसे सोच के मुखर बनाना पड़ता है।
