मां
मां
घेर लेने को जब भी बलाएं आ गईं
ढाल बनकर मां की दुआएं आ गईं
तकलीफें जब जलाने लगीं बन कर सूरज का ताप
आंचल अपना पसार कर मां ने कर दी शीतल छांव
जीवन के संघर्षों की बोझिलता जब करने लगती शिथिल
गोद में मां के रखकर सिर सो जाते हैं निश्चिंत
जान लेती है न जाने कैसे सब अनकहे जज्बात
जान लेती है ना जाने कैसे दिल के तहखानों के राज
जान लेती है न जाने कैसे मुस्कुराहट के पीछे का दर्द
जान लेती है न जाने कैसे कि आंख क्यों है नम
न कोई दोस्त हैं न कोई हमदर्द है मां जैसा
बीज से वृक्ष बनाती वो अपनी हस्ती को मिटा
कागज पर जो लिख दिया मैंने मां का नाम
कलम भी रूककर झुक गई करने उन्हें प्रणाम।
