गुजरता हुआ साल... नई उम्मीद
गुजरता हुआ साल... नई उम्मीद
ये वक्त भी चलता धीमी गति से है
पर बीत तो बड़ी जल्दी जाता है
आज,कल में और कल फिर आज बन जाता है
महीने दर महीने बीतते जाते हैं
हम अपने कामों को पूरा करने में वक्त बिताते हैं
कुछ लक्ष्य होते जो साल में पूरे करने होते हैं
कुछ हो भी जाते हैं पर कुछ अधूरे रहते हैं
इन चुनौतियां के पड़ाव पार करते करते
साल के आखिरी पड़ाव पर कब पहुंच जाते हैं
खबर ही नहीं रहती हैरान रह जाते हैं
नये साल की उम्मीद में कुछ नये प्रण बनाते हैं
जो रूठ गए उन्हें इस बार मना कर रिश्तों के ख्वाब बुनते हैं
जो चले गए दूर इतनी कि लौट कर न आएंगे
उनके बिना जीने की हिम्मत मन में भरते हैं
ये उम्मीद है जो साल दर साल आगे बढ़ाती जाती है
जिंदगी में जीने के चाह जगाती जाती है