हर रोज जगा
हर रोज जगा
देख ! हर रोज जगा
कभी मिलता
धुन कम कब रहा
ओ कहा कीचड़ ढेर
अब देख भागा
हंस पड़े लोग
वही बैठे कहीं
न बात मानी
न राग तानी
चल पड़े झुंड में
जो हार माने
मौन ठाने
मैं कहा भाव का
अपमान करता
हार में विश्वास रखता
हाँ हार में विश्वास रखता ।