संसार का सार
संसार का सार
कोई कहता चला जा रहा है
कोई सहता चला जा रहा है
कोई खुद को समेटने में लिप्त है
तो कोई ढहता चला जा रहा है
कोई खुद में ही खो रहा है
कोई दूर खुद से हो रहा है
किसी की नींदे उड़ चुकी है
तो कोई चैन से सो रहा है
कोई किसी की सुनता नहीं
तो कोई कुछ कहता नहीं
कोई अरमान पूरे कर रहा है
कोई ख्वाब तक बुनता नहीं
कोई खुल के हंस रहा है
किसी का रोना दुश्वार है
यही है नियम दुनिया का
संसार का यही सार है
