जय हिंद
जय हिंद
दो बूंँद आंँसुओं के खारे पन से
समुद्र भी हारा होगा
जब नवेलियों ने मांँग का सिंदूर पोंछ
मंगलसूत्र उतारा होगा
तो क्या हुआ
गए थे लंबे चौड़े गोरे चिट्टे कद काठी में
लौटे एक मांँस का टुकड़ाकटोरे में आया होगा
एक फौजी की सुहागन होने का गौरव उसके दिल ने नहीं
पूरी दुनिया ने उस को गौरवान्वित हो बताया होगा
मर मिटी थी वह भारत के उस इंकलाब के नारे पर
खुश हुई कितनी थी वह जब
शहीद सुहाग पर उसके चिलमन- ए- दुनिया ने
आगे बढ़कर जिंदाबाद का नारा लगाया होगा
बुजदिली में जो रोए उनकी आंँखों में वह पानी था
कायर ना थी वीरांगना यह
आंँखों ने इसकी पवित्र गंगाजल गिराया होगा
क्योंकि वह कह कर गया था
मैं फौजी उस सरहद का प्रहरी हूंँ
गोलियांँ सीने पर खाने का व्रत आहारी हूंँ
धूप, बरसात, तूफान हो चाहे पूस की ठंडी रात
रेत चल जाए चाहे आंँखों में पलकें ना झपकेगी
नियमित जागता भारत मांँ कामैं वो चौकीदार हूंँ
ज़मींदोज कर दूँ दुश्मन के कदम की आहट को
मुकम्मल वो मैं रोशन -ए- काफिर हूंँ
तो क्या हुआ दुर्गम है रास्ता किंचित मुझ में भी डर नहीं
गद्दार तो क्या उसका साया भी ना फटक पाएगा
हर जर्रे जर्रे चप्पे-चप्पे पर रखने वाली मैं वो नजर हूंँ
आऊंँगा जब लिपट कर तिरंगे में मत रोना तुम
मैं मरकर भी अमर रहूंँगा तुम्हारे आसपास रहूंँगा
मुस्कुराता फौजी मांँ भारती का वो लाल हूँ
शहीदों में चमकता सुनहरा मैं वो नाम हूंँ।
