माँ ...ये एक शब्द ही काफी है
माँ ...ये एक शब्द ही काफी है
माँ
ये एक शब्द ही
काफी है
फिर भी इनकी बात
शुरू करू तो खतम नही होगी,
अक़्सर दिन में हमारी
मीठी नॉक्ज़ोक
हुआ करती है,
पर प्यार वो मुझसे ही
ज्यादा करती है,
माँ खाने की शौक़ीन है,
पर हर रोज़ वो
थाली में मेरे ही
ज्यादा परोसती है,
हर छोटी छोटी
चीज़ों में उनका प्यार
दिखता है,
वो अक़्सर मुझे
पापा की डांट से
बचा लेती है,
और फिर खुद
डांट लगाती है,
पर उसकी डांट में भी
उसका प्यार झलकता है,
माँ ने मुझे सपने भी दिखाए,
और उनको पूरा करने का
होसला भी दिया है,
मुझे सहारा दिया है,
पर उससे ज्यादा मुझे
खुद उठना सिखाया है,
वो अफ़सोस करती है
की वो पढ़ नही पाई ज्यादा
पर मेरे लिए तोह
वो ही मेरी डिज़ाइनर है
वो ही मेरी मस्टर सैफ है
वो ही मेरी डॉक्टर है
और वो ही मेरी फिलॉसोफर है।
वो ही है जिसने लोगो की
ना सुनकर हमेशा मुझपर
भरोसा किया है,
एक दोस्त की तरह
मुझे समजा है।
माँ तुमने खुद से ज्यादा
दुसरो को खुश रखना सिखाया,
वेसे कभी तुम्हे कहा नही है
पर आज कहे देती हूँ
जब भी मुझे
ट्रॉफी मिलती है
हर बार उसमे
तुम्हारी दुआ की
महेक आती है।
वो दिन भी कमाल के थे,
जब बचपन में जब तुम
मुझे साइकिल पे
स्कूल छोड़ने आया करती थी।
तुम घड़ी नही पहनती
फिर भी तुम्हारे पास
हर किसी के लिए वक्त है
बस खुदके लिए ही वक्त नही।
आज तुम ज़िम्मेदारी के
बोज़ के तले इतनी डुब गयी की
अब खुदके बारे सोचती ही नही हो।
पर एक बात बताओ
जब भी बात तुम्हारी
ख़ुशी की आती है
तब क्यों लोगो की
बातों पे ध्यान देती हो?
मेरे लिए तुमने अपने
सारे शौक़ छोड़ दिए
जिससे मेरा ख्याल
ज्यादा अच्छे से रख सको।
हां वो अलग बात है की
तुम अपने सपने मुझमे
देखा करती हो,
हां इस बात पे लड़ भी
लेते है हम, पर फिर भी
होना तोह वही है
जो तुम चाहती हो,
तुम्हारे लिए चित्रकला, डांस,
एक्टिंग, खाना पकाना
पता नही क्या क्या!
सीखने की कोशिश की है
सबसे ज्यादा तो घर की
सफाई करना वो भी तुम्हारी तरह,
हां अक्सर गुस्सा भी आता है
जब तुम मेरी चीज़ों में
कुछ कमी ढूंढ़ लेती हो,
पर फिर अच्छा लगता है।
आज जब बड़ी हो गयी हूँ
मुझमे मैं कम तुम ज्यादा हो ।