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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

हर दिन मां का

हर दिन मां का

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एक दिन ही क्या अपनी मां का होता है?

बाकी दिन क्या मां का सजदा न होता है?

जैसे एक दिन में बीज से पेड़ न होता है

वैसे एकदिन में दूध कर्ज अदा न होता है

हमारे एकदिन मात्र मातृदिवस मनाने से,

मां के प्रति अपना प्यार पूरा थोड़ होता है

एक दिन ही क्या अपनी मां का होता है?

बाकी दिन क्या मां बिना जिंदा होता है?

बंद करो यह पाश्चात्य संस्कृति का ढंग,

जिससे अपनी मां का अपमान होता है

क्या खुदगर्जी में जमीर इतना सोता है?

मातृ स्मरण का एकदिन फिक्स होता है

मातृदिवस तो बेटे का हरपल ही होता है

जब तक सांसो का चलता-रहता तोता है

एक दिन ही क्या अपनी मां का होता है?

एक दिन में क्या कोई शिशु बड़ा होता है?

कैसा आज मिल रहा सबको न्यौता है

खुली आँखों से दे रहे,खुद को धोखा है

एक दिन लगा लो,अपनी माँ का स्टेटस,

अपने जैसा कोई श्रवण कुमार न होता है

फ़िझुल का दिखावा बंद भी करो यारो,

मां बिना तो कोई भी कल नही होता है

एक दिन ही क्या अपनी मां का होता है?

मां बिना तो कोई भी कल नही होता है

अपने माता-पिता की हरपल सेवा करो,

इनके जैसा कोई भी सगा नही होता है

माता-पिता ही जीवित खुदा है,साखी

ईश्वर भी इनके आगे सदा छोटा होता है

मातृवंदन का कोई एकदिन थोड़ी होता है

हरक्षण ही इनके समर्पण के लिये होता है

मातृचरणों की हरपल सेवा करनेवाला,

लोक-परलोक सर्वत्र ही पूजनीय होता है

एक दिन नही,मां का तो हरदिन ही होता है,

मां के बिना भी क्या चाँद-सूर्य उदय होता है?



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