तुझको प्रणाम
तुझको प्रणाम
ढूँढ रही हूँ घर में माँ!
आई हूँ मायके में अपने माँ!
चौखट पर खड़ी रहती थी तू
भर बाँहों में भरती थी तू।
हँसती थी मुस्काती थी
सीने से लगाती थी।
छूट गया माँ !मायके का सपना
जब से गई माँ छोड़ के अँगना।
छाँव जैसा तेरा वो अचरा
नज़र उतारने वाला कजरा।
बहता नसों में तेरा कतरा,
माँ!का रिश्ता होता है गहरा।
ढूँढ रही हूँ तुझे कनस्तर में,
अंगीठी के बुझे राख में।
काँटे चम्मच में स्वाद नहीं
जो था ख़ुशबू तेरे हाथ में।
माँ!लाखों में वो बात कहाँ
चुपके से मुट्ठी में भरती जहां।
सुहाग पेटी को हाथों से सजाना,
आँचल में माँ खोइचा का भरना।
साथ क्यों छूट गया,
बंधन क्यों टूट गया माँ !
आकर गले लगा लो ना,
तस्वीर में मत मुस्कुराओ माँ !
मन्नत तेरी बच्चों की ख़ुशी
जन्नत तेरी हमारी हँसी
हर पल हर दिन साँसों में बसी
तुझसा ख़ज़ाना धरा पर नहीं।
बोल तेरे लगाते मरहम,
वात्सल्य का रूप अनुपम।
माँ ही सत्यम,शिवम्,सुंदरम्,
माँ तुझको प्रणाम।