नेता जी का कुत्ता
नेता जी का कुत्ता
एकदिन एक सांप को मिला सियासी काम
नेता जी को डस लेना था उसे चुनावी शाम
काम ये विपक्ष नहीं खुद नेता जी करवा रहे थे
भोली भाली जनता से भीख दया की पा रहे थे
कितने जानवर हो चुके थे नेता जी के शिकार
इसी के दम पे दम बन थी गई नेता की सरकार
चल पड़ा था सांप काटने कुत्ते से टकराया
एक हल्की सी ठोकर से कुत्ता सम्हल न पाया
सांप बोला क्यों अपनी ही जाति पे दाग़ लगाते हो
गिरे हुए हो और महलों के तुम दरबान कहलाते हो
कुत्ता बोला रोते रोते मेरा मालिक एक नेता था
खूब खिलाता खूब पिलाता महंगे कपड़े देता था
पिछले चुनाव में उसने मुझसे खुद को है कटवाया
उसके खून का सियासी कीड़ा मेरे अंदर भी आया
मेरा तो अब हाल बुरा है सबको काट मैं लेता हूँ
लेकिन चुनाव के आते ही तलवे चाट मैं लेता हूँ
घर में रहकर अपनों पर छुपकर वार मैं करता हूँ
छीन के मुफ़लिस की रोटी अब अपना पेट मैं भरता हूँ
सांप डर गया कुत्ते को फिर सारा हाल बताया
कुत्ते ने भी रंग है बदला उसको गले लगाया
मन में कुत्ते के चलने लगा फिर राजनीति का चक्का
सोच रहा अब चुनाव लड़ूंगा एक वोट है पक्का है