कविता *शब्द*
कविता *शब्द*
शब्दों का तोल ही, रिश्तों का मोल है।
शब्द भाव है, अंतर्मन के चलते-फिरते विचारों का प्रभाव है।
शब्द ज्ञान है, बौद्ध है।
जीवन के रंग हैं, ढंग हैं।
शब्द राग है, रीत है, प्रीत है, शब्द से ही जीत है।
शब्द पाते हैं, शब्द खोते हैं,
अपनी आभा से गिरते हैं, सम्भलते हैं।
शब्दों का ही सारा खेल है। शब्द जीत है, शब्द हार है।
संबंधों को जोड़ने-तोड़ने का जाल है।
भावनाओं से निकलते शब्दों में प्रेम की बहार है।
क्रोध में कहे गए तो सब हाहाकार है।
जीवन में शब्दों में प्रेम घोलो।
जो भी बोलो मीठा बोलो। शब्दों में जादू है,
तो अपनों पर काबू है।
बेबाक होते शब्द रिश्तों को तोड़ते हैं।
दुश्मनी को जोड़ते हैं।
मन में खटास घोलते हैं।
शब्द सार है, शब्दों के तीर आर-पार हैं।
शब्दों से ही जीवन का ताल मेल है।
शब्द तो शब्द हैं, शब्द ही जीवन का सार है।