श्रीमद्भागवत ४२ ;हिरण्याक्ष के साथ वराह भगवन का युद्ध और हिरण्याक्ष वध
श्रीमद्भागवत ४२ ;हिरण्याक्ष के साथ वराह भगवन का युद्ध और हिरण्याक्ष वध
वरुण की बात सुनकर वो दैत्य
प्रसन्न हुआ, चल दिया वहां से
श्री हरि के हाथों तू मरेगा
उसने ये भी न सुना ध्यान से।
नारद से हरी का पता लगाकर
रसातल में वो पहुंच गया था
दाढ़ों की नोक पर पृथ्वी ला रहे
वराह भगवान को देखा था वहां।
खिलखिलाकर हंसा और बोला
जंगली पशु ये कहाँ से आया
फिर वराह जी से कहे कि
पृथ्वी छोड़ तू इधर को आ जा।
इसे तो ब्रह्मा जी ने किया है
रसातल वासिओं के हवाले
तू नहीं ले जा सकता इसे
मेरी गदा तुझे मार ही डाले।
पृथ्वी को भयभीत देखकर
वराह भगवन कुछ भी न बोले
जल के बाहर जाने को हुए तो
दैत्य उनके पीछे हो ले।
बोला वो वराह भगवान से
क्या भागने में न आये लज्जा
वराह भगवन ने जल के ऊपर
पृथ्वी को था स्थापित कर दिया।
तब उन्होंने क्रोध में आकर
कहा, अरे दुष्ट,बड़ाई अपनी करे
ध्यान न दूँ तुझ जैसे जीव पर
और उसका बहुत उपहास करें।
तिरस्कार जब उसका किया तो
उसने गदा से वराह पर प्रहार किया
भगवान ने अपने को बचाया
दोनों में भयंकर गदा युद्ध हुआ।
ब्रह्मा और ऋषि आये देखने
सूकर भगवन से वो कहने लगे
मुझसे वर पाकर ये दुष्ट है
बड़ा प्रबल हो गया दैत्य ये।
ये घमंडी और निरंकुश है
पापी को आप जल्दी से मारो
आप ही के हाथों मृत्यु हो इसकी
लोकों पर से ये भार उतारो।
मुस्कुराये भगवान तभी,और
शत्रु की ठुड्डी पर गदा दे मारी
पर वो गदा नीचे गिर गयी
सुदर्शन चक्र फिर ले लिया भारी।
दैत्य ने जब गदा चलाई
हाथ से उसको पकड़ लिया था
जब उसने त्रिशूल चलाया
चक्र से उसे काट दिया था।
उसकी माया को काटकर
भगवान ने एक प्रहार किया उसपर
वृक्ष सामान पृथ्वी पर गिर पड़ा
शरीर त्यागा उसने वहीँ पर।
उसी समय पति कथन स्मरण कर
दित्ती का भी ह्रदय कांप गया
हो गयीं थीं बहुत व्यथित वो
स्तनों से उनके रक्त बहने लगा।
हिरण्याक्ष के वध को सुनकर
देवता सभी प्रसन्न हो गए
इसके बाद भगवान हरि भी
वहां से अपने धाम चले गए।