श्रीमद्भागवत -४७;श्री कपिल देव जी का जन्म
श्रीमद्भागवत -४७;श्री कपिल देव जी का जन्म
देवहूति ने जब कहा ये
कर्दम मुनि को स्मरण हो आया
विष्णु जी ने जो कहा था उनसे
तब देवहूति से उन्होंने ये कहा।
शीघ्र ही पधारेंगे विष्णु जी
इस प्रकार खेद ना करो तुम
तुम्हारे गर्भ से प्रकट होंगे वो
श्रद्धापूर्वक हरि भजन करो तुम।
ये सुन देवहूति करने लगी
आराधना परम पुरुष विष्णु की
बहुत समय जब बीत गया था
गर्भ से प्रकट हुए कपिल मुनि जी।
आकाश में मेघ जल बरसाने लगे
गंधर्व गान करें, नाचें अप्सरा
दिशाओं में सभी आनंद छा गया
देवता करें पुष्पों कि वर्षा।
सभी जीव प्रसन्न हो गए
ब्रह्मा तब थे आया वहाँ
मरीचि आदि भी उनके साथ थे
ब्रह्मा ने कर्दम से ये कहा।
प्रिय कर्दम, तुम सभ्य बहुत हो
मान हो देते तुम दूसरों को
अपने वंशों से तुम्हारी कन्याएँ
आगे बढ़ाएँगी इस सृष्टि को।
अब तुम मरीचि आदि मुनियों को
अपनी कन्याएँ कर दो समर्पित
जिससे कि इस संसार में
फैल जाएगा तुम्हारा सुयश।
जानूँ में विष्णु ने तुम्हारे
जन्म लिया है पुत्र रूप में
देवहूति को बोले, हरि ने ही
प्रवेश किया तुम्हारे गर्भ में।
सिद्धगणों के स्वामी होंगे ये
पृथ्वी पर सवछन्द विचरेंगे
लोकों में तुम्हारी कीर्ति होगी
कपिल नाम से विख्यात होंगे ये।
यह कह कर ब्रह्मा चले गए
कर्दम जी ने उनकी
आज्ञा से
अपनी सारी कन्याओं का
विवाह किया प्रजापतीयों से।
कला का विवाह मरीचि से हुआ
अनुसूया का अत्रि मुनि से
अंगिरा से श्रद्धा व्याहि
हविर्भु का पुलसत्य मुनि से।
पुल्ह को गति नाम की कन्या
क्रिया पत्नी बनीं क़्रतु की
भृगु जी को ख्याति मिलीं और
वशिष्ठ को अरुंधती समर्पित की।
शांति नाम की कन्या उनकी
समर्पित कर दी अथर्वा मुनि को
फिर सब ऋषि चले गए थे
वापस अपने अपने आश्रमों को।
कर्दम के घर भगवान पधारे
एकांत में उनके पास गए वो
प्रणाम किया और कहा आपने
सत्य किया अपने वचन को।
सारी शक्तियाँ आधीन आपके
शरण में पड़ा हूँ मैं आपके
आप की ही कृपा है ये कि
मुक्त हुआ मैं तीनों ऋणों से।
मेरे सभी मनोरथ पूरे हो चुके
अब शोकरहित विचरणा चाहूँ
सन्यास मार्ग को ग्रहण करूँ अब
बस आपकी आज्ञा चाहूँ।
भगवान कहें, जन्म हुआ मेरा
मुनियों को मुक्ति देने के लिए
आज्ञा दूँ मैं,संपूरण कर्म तुम
अर्पण करो मुझे, तुम्हें मोक्ष मिले।
माता देवहूति को भी मैं
आतमज्ञान प्रदान करूँगा
जिससे संसार का भय नाश हो
उनको भी तब मैं मुक्ति दूँगा।
परिक्रमा कर कर्दम वन को चले गए
परब्रह्म में मन लगा लिया
बंधनों से वो मुक्त हो गए
प्रभु का परमपद पा लिया।