श्रीमद्भागवत - २६ ;भागवत के दस लक्षण
श्रीमद्भागवत - २६ ;भागवत के दस लक्षण
श्रीमद्भागवत - २६ ;भागवत के दस लक्षण
हे परीक्षित,भागवत पुराण में
सर्ग,विसर्ग,स्थान,पोषण है
उत्ति,मन्वन्तर, ईशानकथा,विरोध
मुक्ति,आश्रम का वर्णन है।
आकाशादि पंचभूतों की
इन्द्रिआं,अहंकार और महतत्व की
उसको सर्ग कहतें हैं जब
इन सबकी उत्पत्ति होती।
ब्रह्माजी के द्वारा सृष्टि का
निर्माण हो, उसे विसर्ग कहते हैं
स्थान उसे कहते हैं जब
विष्णु सृष्टि को स्थिर रखते हैं।
भक्तों के ऊपर कृपा करें जो
उसका नाम ही पोषण है
शुद्ध धर्मों का अनुसरण करें जो
वो कहलाते मन्वन्तर हैं।
जीवों की जो कामनाएं हैं
अति नाम से कही जाती हैं
प्रभु अवतारों की गाथाएं
ईश कथा वो कहलाती हैं।
जीव का ईश्वर में लींन हो जाना
निरोध हम सब इसको कहते हैं
परमात्मा में लीन हो जाएं जब
उसका नाम ही मुक्ति है।
इस जगत की उत्पत्ति और
प्रलय प्रकाशित होती जिसमें है
वही परमब्रह्म आश्रय है और
शास्त्र इसे परमात्मा कहते हैं।
विराट रूप ने ब्रह्माण्ड को फोड़ा
रहने का स्थान ढूंढे जब
पवित्र जल की सृष्टि की उसने
जल का नाम नार पड़ा तब।
विराट पुरुष फिर उस जल में
हजार वर्ष तक रहा वहां था
जल में रहने के कारण ही
उसका नाम नारायण पड गया।
जब नारायण जगे योगनिद्रा से
अनेक होने की इच्छा होने पर
तीन भाग में विभाग किया वीर्य
अधिदेव,आदिभूत और अध्यात्म।
विराट पुरुष हिलने डुलने लगा तो
उसके शरीर में जो आकाश रहे
इन्द्रियबल, मनोबल और शरीरबल
ये तीनों उससे उत्पन्न हुए।
उनसे फिर उन सब का भी राजा
प्राण तब उत्पन्न हुआ था
प्राण जोर से आने जाने लगा
भूख प्यास का तब अनुभव हुआ।
खाने पीने की इच्छा हुई तब
मुख प्रकट हुआ उनक
े शरीर में
वाक इन्द्रियां प्रकट हुई थीं
उनकी बोलने की इच्छा से।
श्वास के वेग से नासिका छिद्र
नाक, घ्राणेन्द्रियाँ सूंघने की इच्छा से
दूसरों को जब देखना चाहें तो
नेत्र प्रकट हो गए उनके।
ऋषिगण जब जगाएं स्तुतिओं से
सुनने की इच्छा हुई उनकी
इस इच्छा को पूरा करने
कान, दिशाएं प्रकट हो गयीं।
शरीर में चर्म प्रकट हुआ जब
इच्छा वस्तुओं को छूने की
हाथ उनके प्रकट हो गए
जब इच्छा हुई कर्म करने की।
इच्छा हुई अभीष्ट स्थान पर जाऊं
तब उनके पैर उग आये
संतान, रत्ति और भोग की कामना
उत्पत्ति लिंग की तब हो जाये।
मलत्याग की इच्छा हुई थी
प्रकट हुआ था गुदा द्वार तब
प्रकट हुआ नाभीद्धार, इच्छा
शरीर से शरीर में जाने की जब।
अन्न जल ग्रहण करने की इच्छा
आंतें, नाड्डीआं उत्पन्न हो गयीं
माया पर विचार जब करना चाहें
ह्रदय की तब उत्पत्ति हुई।
सात धातुएं प्रकट हुई थीं
पृथ्वी, जल और तेज से उनके
ऐसे प्राणों की उत्पत्ति हुई
आकाश,जल और वायु से।
दो रूप भगवान के हैं
एक स्थूल और एक सूक्षम है
व्यक्त और अव्यक्त ये दोनों
माया के द्वारा रचित हैं।
सत्व की प्रधानता से देवता
और रजोगुण से मनुष्यों की
तमोगुण की प्रधानता होती तो
नारकीय योनियां ही हैं मिलती।
जब प्रलय का समय है आता
रूद्र रूप में वो हैं आते
ये समस्त लोक सारे तब
उनमें ही लींन हो जाते।
शौनक जी पूछें,आप कहें थे
विदुर विचरण तीर्थों का किया था
मैत्रय मुनि से प्रश्न किये तो
मुनि ने उन्हें उपदेश दिया था।
शौनक जी ने जब ये पूछा
सूत जी कहें,सुनाऊँ मैं तुम्हे
शुकदेव जी ने जो कुछ कहा था
जब यही बात पूछी परीक्षित ने।