श्रीमद्भागवत -२१ ;भगवान के स्थूल और सूक्षम रूप की धारणा
श्रीमद्भागवत -२१ ;भगवान के स्थूल और सूक्षम रूप की धारणा
सृष्टि के प्रारम्भ में प्रसन्न करें ब्रह्मा
इसी धारणा से श्री हरि को
सृष्टि सृजन की समृतियां प्रापत कीं
प्रलय काल में विलुप्त हुईं जो।
दृष्टि उनकी अमोघ हो गयी
उनकी निश्चल हुई बुद्धि भी
इस सृष्टि को वैसे ही रच दिया
जैसे प्रलय के पहले वो थी।
स्वर्ग आदि निरर्थक फेर में
लोगों की बुद्धि फँस जाती
भटकता रहता स्वपन लेता वो
सुख की वासना उसे सताती।
किन्तु उन मायामय लोकों में
कभी भी सुख की प्राप्ति न करे
विद्वान मनुष्य को चाहिए कि
बुद्धि को अपनी वो निशचल करे।
अगर कुछ मिले, बिना परिश्रम के
उसके लिए फिर क्यों यतन करे
पृथ्वी पर सोने से चल जाये
तो पलंग के लिए वो क्यों प्रयत्न करे।
भगवन की कृपा से मिलीं भुजाएं
फिर क्या आवश्यकता, तकिये की
अंजलि से जब काम चले तो
जरूरत नहीं किसी बर्तन की।
रासते में पड़े हुए चिथड़े
पहनने के लिए मिल जाते हैं
भूख लगी हो जब तुमको तो
वृक्ष तुम्हे तब फल देते हैं।
जब इच्छा हो जल पीने की
नदियां हमको जल देती हैं
रहने के लिए भी मनुष्यों के
पहाड़ों में गुफाएं होती हैं।
सब छोडो, भगवन हैं जो वो
शरणागत की रक्षा करते
जन्म-मरण से छूटना है तो
भगवन का नाम क्यों नहीं भजते।
कोई कोई साधक ह्रदय में
धारणा करते चतुर्भुज रूप की
धारण से मन को स्थिर करें और
चेष्ठा करें उसे देखते रहने की।
जैसे जैसे फिर बुद्धि शुद्ध हो
चित तब स्थिर हो जायेगा
सदा धारण करते रहना है
तभी कृष्ण को तू पायेगा।
हे परीक्षित, जब योगी पुरुष कोई
मनुष्य लोक को छोड़ना चाहे
तब वो देश और काल में
अपने मन को ना लगाए।
सुखपूर्वक स्थिर होकर वो
आसन पर तब बैठकर
मन में संयम इन्द्रिओं का करे
प्राणों को अपने जीतकर।
अंतरात्मा में लीन करे मन को
अंतरात्मा को परमात्मा में
जब वो दोनों एक हो जाएं
स्थित हो जाये उस अवस्था में।
ये अवस्था है ही ऐसी कि
न कोई है कर्तव्य इसमें
न सत्वगुण, न रजोगुण
ना तमोगुण होता इसमें।
ज्ञानदृष्टि के बल से जिनकी
चित की वासना नष्ट हो जाये
उस योगी को इस प्रकार से
शरीर त्याग तब करना चाहिए।
ब्रह्मलोक में जहाँ वो जाये
ना शोक ना दुःख है वहां
ना भय है वहां किसी को
ना बुढ़ापा ना मृत्यु वहां।
बस एक बात का दुःख वहां पर
लोग जो परमपद ना जा पाएं
जन्म मरण का देख संकट उनका
वो दयावश व्यथित हो जाएं।
फिर योगी, आनंदरूप
परमात्मा को प्राप्त हो जाता
बार बार नहीं आना पड़ता
जन्म मरण से मुक्त हो जाता।
संसार चक्र में पड़े लोगों को
करना चाहिए साधन वही है
जिससे मिले कृष्ण की भक्ति
कल्याणकारी मार्ग यही है।
इसीलिए चाहिए मनुष्य को
सब समय और सभी स्थिति में
सम्पूर्ण शक्ति से वो प्रभु का
श्रवण, स्मरण और कीर्तन करे।
भगवन कथा सुने संत पुरुष से
विषयों का प्रभाव चला है जाता
प्राणी वो शुद्ध हो जाये
कृष्ण को वो प्राप्त कर लेता।