जटायु का त्याग
जटायु का त्याग
ज़ब उसने छल से,सीता का अपहरण किया,
असहनीय था उस दुष्ट रावण का ये व्यवहार।
भोली सीता जान नहीं सकी उस छलिए को,
बलपूर्वक अपने विमान में कर लिया सवार।
अकेली क्या करती, कैसे लड़ती अबला नारी,
पुरुष बल के कारण रावण पड़ रहा था भारी।
बार बार रघुनाथजी और लक्ष्मण को पुकारा,
जितना संभव हुआ वह करती रही प्रतिकार।
आकाश मार्ग से, दक्षिण दिशा को निकला,
बहुत दूर से बूढ़े जटायु ने रावण को देखा।
बचाओ, बचाओ, रोती हुई बोलती थी सीता,
जटायु से नहीं देखा गया, होता अत्याचार।
गिधराज ने रावण को, कड़ी बोली में टोका,
फिर अपनी सारी शक्ति लगाकर भी रोका।
लंकेश ने बूढ़ा गिद्ध कहकर मजाक उड़ाया,
जटायु ने तेज पंजों से किया वार पर वार।
रावण को क्रोध आया तो संभाल ली तलवार,
पंख काट दिया जटायु का, कर दिया बेकार।
तड़पता, राम राम कहता धरती पर गिरा वो,
राम और लक्ष्मण पहुंचे वहां सुनकर पुकार।
जटायु ने राम को घटना से अवगत कराया,
घायल जटायु ने रामकृपा से परलोक पाया।
प्रभु ने जटायु को पिता जैसे सम्मान दिया,
मुखग्नि देकर विधिवत किया दाह संस्कार।
मिल गई श्री राम को महत्वपूर्ण जानकारी,
तत्पश्चात कर ली, आगे बढ़ने की तैयारी।
पशु, पक्षी, प्रकृति सबने उनका साथ दिया,
जटायु को करना चाहिए, सादर नमस्कार।
