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Khushi G.S. Suryavanshi

Classics Inspirational

2.5  

Khushi G.S. Suryavanshi

Classics Inspirational

वीरों को प्रणाम

वीरों को प्रणाम

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हे वीरों आज मैं तुम्हारी शान में कुछ कहती हूँ

इस मंच से आज तुमको अपना प्रणाम देती हूँ


(जब एक वीर सैनिक सीमा पर जा रहा होता है तब वह क्या सोच रहा होता है)

जा रहा हूँ एक माँ को छोड़ दूसरी माँ के आंचल में

धरती माँ के प्रति भी कुछ कर्तव्य निभाने में

क्या मैं नही चाहता रहना-२

बहना की राखी और प्रियतमा के काजल में

लेकिन हुआ अगर ऐसा तो मैं कैसे आन बचाऊंगा

दोनों माँ के ममत्त्व में जीते जी दाग लगाऊंगा १


(अब जब एक सैनिक सीमा में पहुँच जाता है तब वह क्या सोच रहा होता है)

हाँ आती है माँ याद मुझे भी तुम्हारे आँचल की

रातों की लोरी और प्यारे से दुलार की

वो बहना का प्यार वाला झगड़ा मुझे बहुत सताता है

लेकिन तुम्हारा बेटा अपना कर्तव्य निभाता है

जानता हूँ अगर मैं आ जाऊं तो लाखों माँ चैन से सो नहीं पाएंगी

राहो में हमारी कलियाँ निस्वछंद रह न पाएंगी २


(जब एक सैनिक पूरी सत्यनिष्ठा के साथ जब अपना कर्तव्य निभाता है

और समाज में जब कोई देशविरोधी बातें सुनता है तब वह क्या सोच रहा होता है)

तुम अपनी भारत माँ का ये कैसा अहसान चुका रहे

जीते जी भारत के कुल को तुम दाग लगा रहे

इस तरह तो दुश्मनों की स्वयं जीत हो जाएगी

देश में एक बार फिर से ग्रह युद्ध की बारी आएगी

छोड़ सारे बेर कुछ काम करो कुर्बानी

जिसके कारण मिट्टी भी चंदन हो हिंदुस्तानी ३


(अब जब एक सैनिक अपने देश के लिए शहीद हो जाता है तब

अंतिम समय में वह अपने देशवाशियों से क्या कहना चाहता है)

जाते-जाते मैं अपना पैगाम देता हूँ

भारत की इस धरती को अमरत्व का जाम देता हूँ

मेरे इस बलिदान को व्यर्थ न तुम जाने देना

भारत की इस धरती में स्वराज्य को बनाये रहना

तन,मन,धन तीनों इस भारत भूमि को समर्पित रहें

जय हिंद के उदघोष से गगन सदैव गुंजित रहे


(ऐसे वीर, बलिदानी सैनिक की देशभक्ति को मेरी 4 पंक्ति समर्पित )

गौरव हो तुम भारत का तुम हमारा अभिमान हो

भारत की गरिमा की तुम असली पहचान हो

आज ये हिमालय भी तुम्हारे आगे स्वयं को बौना पाता है

तुम्हारे बलिदानों को देख अपने कद में शर्माता है

भारत के स्वर्णिम इतिहास की तुम गौरव गाथा हो गए

गिर धरती माँ के आंचल में तुम आसमानी हो गए ।


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