श्रीमद्भागवत -३३ ;ब्रह्मा जी की उत्पत्ति
श्रीमद्भागवत -३३ ;ब्रह्मा जी की उत्पत्ति
सुनकर प्रश्न मैत्रेय जी बोले
करूँ आरम्भ मैं भागवत पुराण का
संकर्षण भगवान ने स्वयं था इसे
सनकादि ऋषियों को सुनाया।
संकर्षण जी थे पाताल लोक में
सनकादि ने प्रश्न किया उन्हें
पूछें पुरुषोत्तम तत्व क्या है
जानना चाहें हम सब आपसे।
उस समय शेष भगवान जी
मानसिक पूजा कर रहे थे
नेत्र बंद थे, प्रश्न को सुनकर
देखा आधे खुले नेत्रों से।
सनत्कुमार स्तुति करें उनकी
संकर्षण जी ने भागवत सुनाई
सनत्कुमारजी ने फिर वो भागवत
सख्याप्पन मुनि को थी बताई।
उन मुनि ने अपने शिष्य
पराशर जी और बृहस्पति जी को
मुनि पुल्सत्य के कहने पर फिर
पराशर जी ने सुनाई थी मुझको।
मैत्रेय जी फिर बोले विदुर से
अब ये मैं तुम्हे सुनाऊँ
कैसे सृष्टि की रचना हुई
लीला वर्णन मैं करता जाऊं।
सृष्टि के पूर्व डूबा था
जल में सम्पूर्ण विश्व ये
एक मात्र नारायणदेव जी
शेष शय्या पर बैठे थे।
आत्मानंद में मगन थे वो
एक सहस्त्र चतुर्युग बीते
कालशक्ति ने तब प्रेरित किया
अपने अंदर अनंत लोक वो देखें।
नाभि से उनकी कमल प्रकट हुआ
विष्णु उसमें प्रविष्ट हो गए
उसी कमल से वेदों के ज्ञाता
ब्रह्मा जी थे प्रकट हो गए।
ब्रम्हा जी को वहां लोक दिखें न
आकाश में चरों और वो देखें
चारों दिशाओं में देखते
चार मुख हो गए थे उनके।
जान न पाएं रहस्य कमल का
अपना भी वो जानें कुछ नां
सोचें मैं कौन हूँ और
इस कमल का आधार है कहाँ।
ये कमल कैसे उत्पन्न हुआ
अवश्य इसके नीचे कुछ है
कोई ऐसी वास्तु है नीचे
जिसके आधार पर ये स्थित है।
कमल की नाल के सूक्षम छिद्रों से
उस जल में वो थे घुस गए
किन्तु आधार को खोजते रहे वो
पर उसको कभी ना पा सके।
बहुत साल थे बीत गए जब
विफल रहे तब लौट के आये
कमल में अपने समाधी लेकर
योगाभ्यास में बैठ वो जाएं।
ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उन्हें
अन्त्कर्ण में देखा उन्होंने
शेष शय्या पर अकेले ही
पुरुषोत्तम भगवान लेट रहे।
विश्व रचना की इच्छा उनकी
देखें नाभि से कमल प्रकट हुआ
जल, आकाश,वायु,अपना शरीर
कुछ और उनको दिखाई न दिया।
कमल मिलाकर पांच चीजें ये
उनके समक्ष थीं ये सारीं अब
पांच पदार्थ ही देखें वो
प्रभु स्तुति वो करने लगे तब।