गाँव
गाँव
आओ ले चलूँ तुम्हें
मेरे गाँव की ओर
तालाब किनारे खड़े बूढ़े बरगद
की शीतल छांव की ओर
हाँ !!
जर्जर ,खस्ताहाल
मकानों से अटा पड़ा है
आसमा छूती,चमचमाती इमारतों
वाले शहर के साये से ढका पड़ा है
फिर भी!!
संस्कारों,संस्कृति को अपने में सहेजे
दिलों में प्यार लिए लोगों से भरा पड़ा है
आओ ले चलूँ तुम्हें चौड़े रास्तों से
हटकर संकरी पगडंडियों वाले गाँव की ओर
तालाब किनारे खड़े
बूढ़े बरगद की शीतल छांव की ओर
हाँ !!
बोली में थोड़ा अक्खड़पन रखते है
मगर दिलों में अपने अपनापन रखते है
शहरों वाली ये बनावटी
संस्कारी भाषा हमें आती नहीं
जो दिल में है हमारे वहीं बात
हम ज़ुबान पे रखते है
बनावटीपन से दूर अपनी मस्ती में
जीने वाले गाँव की ओर
तालाब किनारे खड़े
बूढ़े बरगद की शीतल छांव की ओर