मोह
मोह
कुछ भी कहो, जो दर्द बेटी को होता है ना मां बाप का , वो बेटे को कभी नहीं होता। बेटे तो मां बाप की जमीन जायदाद के बंटवारे के लिये ही उनके साथ होते है। "कहते हुए शीलाजी ने एक लंबी सास ली।
"अब देखो ना सुबह से तीन चार बार फोन कर चुकी रूही। कि चाय पी ली, नाश्ता कर लिया। बेटा पूछता है कभी ऐसा। "शीलाजी ने फिर सुषमाजी(बहन) से अपनी बात कही।
"क्या जीजी?है कोई बात। बेटा काम करे या यही पूछता रहे। उसको, पता है कि बहु ने चाय , नाश्ता सब टाइम पर दे दिया होगा, तो उसमें पूछने या ना पूछने वाली क्या बात है। "सुषमाजी ने कंबल से अपने पैर ढंकते हुए कहा।
"अरे फिर भी, मां बाप हैं हम कुछ तो अहमियत होगी हमारी। तभी तो बहुऐं भी इज्जत नहीं करतीं, जब बेटे ही नहीं पूछते हैं। "कहते हुए शीलाजी ने फिर सुषमा जी की बात को अनसुना किया, "अब तुम अपने बेटे को ही देख लो, आने वाले दिन ही फोन किया था कि पहुंच गयी कि नहीं, फिर आया कोई फोन। बहु ने तो शायद एक बार भी नहीं पूछा। विभा (सुषमाजी की लड़की )तो रोज एक बार फोन कर ही लेती है तुम्हें। "
"मैं ये छोटी छोटी बातें नहीं सोचती। मेरे बेटे -बहु बहुत करते हैं मेरे लिये। हर चीज का ध्यान रखते हैं, बहु ने, तो सारा घर संभाल रखा है, हमारा, बच्चों का, सुमित का, आने जाने वालों सबका ध्यान रखती है, ऊपर से घर के, बाजार के सारे काम। अपनी बुटिक का काम सो अलग। मैं तो सुमित से कहती रहती हूं भाग्यवान हैं हम कि इतनी अच्छी बहु मिली। "सुषमाजी ने अपनी बहु की तारीफ करते हुए कहा।
"हां तो ठीक है ना, सुमित भी तो लाखों में एक लड़का है। एहसान किस बात का। करती है तो सुमित कितना मानता है तुम दोनों को, विभा(सुषमाजी की बेटी) ने भी तो कितने अच्छे से अपना घर संभाला है, वो तो शुरू से ही हुनरमंद है, हमारी विभा। "शीलाजी ने सुषमाजी के बच्चों की तारीफ करते हुए कहा।
"एक बात बोलूं। तुम्हें अपनी सोच बदलने की बहुत जरूरत है। मुझे तुम्हारी बातें सुनकर हमेशा ऐसा लगता है कि तुम्हारे बेटे बहु में कोई कमी नहीं है, वो जितना कर सकते हैं उससे ज्यादा तुम्हारे लिये करते हैं, लेकिन तुम्हारा अपनी लड़की के प्रति इतना मोह है कि तुम उसके चलते कभी बेटे बहु को इज्जत दे ही नहीं पाती। अब देखो ना मैं बात कर रही हूं अपने बेटे बहु कि तुम विभा के गुण गाने लगी। "सुषमा जी ने अपनी बात रखी ही थी कि "तो क्या बेटियों से प्यार करना गलत है। विभा जितना दुख दर्द बांट लेती होगी तुम्हारा उतना कोई नहीं बांटता होगा। बेटियां दिल की बात समझती हैं। "शीलाजी ने सुषमाजी को टोंकते हुए कहा।
"यही तो तुम्हारी सोच जैसी है , तुम्हे दुनियां वैसी ही दिखती है। मैं तो अपनी कहूं तो विभा क्या दुख दर्द बांटती है? मेरा सिर्फ बोलने से। शादी से पहले वो एक अल्हड़ लड़की थी, जैसे सब होती है। हां कभी कभार मैं बीमार होती तो वो काम में हाथ बटां देती थी, वो तो मेरा सुमित भी करता था । शादी के बाद भी विभा कि जिंदगी में कोई खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि दामादजी लोग तीन भाई है , विभा सबसे छोटी बहु उस घर की इसलिए उसके सास ससुर तो हमेशा से जेठ के साथ ही रहे, तो विभा पर कोई जिम्मेदारी तब भी नहीं आयी। जबकि सोनिया (बहु)हमारे इकलौते बेटे की बहु, बेटा हमारे साथ ही रहना चाहता था तो, उसने तो शादी के पहले दिन से ही एक तरीके से जिम्मेदारियो कोअपने गठबंधन में साथ ही पाया। मैं तो खुशनसीब मानती हूं अपने को कि बिना किसी मनमुटाव के उसने हमें अपना लिया। सारे परिस्थितयों में वो हमारे साथ रहती है विभा नहीं, विभा के वहां हम.मेहमान, हमारे वहां वो। जो भी सुख दुःख हो बहु ही खड़ी रहती है, यहां तक कई बार बेटे से बढकर काम कर जाती है। और ये कोई मेरी बहु की बात नहीं है , जो सास ससुर के साथ रहती है वो करती ही है, बस उनके काम को सम्मान तभी मिल पाता है । जब हम उनके कामों को बेटी मोह से ऊपर उठकर देखते है। सच्चाई तो ये है कि जिस घर में बेटियों का मोह ज्यादा होता है ना वहां बेटों, बहुओं का सम्मान और कद्र दोनों नहीं होती। क्योंकि हाय मेरी बेटी से ही फुर्सत नहीं होती । वर्ना कायदे से देखा जाये बेटी तेरी हो या मेरी , कौन आकर हमारा करके जा रही है, बेटियां पूछ लेती है चाय पी ली , तो वो गुणी हो गई और जो बिस्तर पर बैठाकर चाय पिला रही है उसका कोई गुण नहीं। , जो बेटा दिन रात मेहनत करके उस रोजमर्रा की चाय का इंतजाम करने में अपनी हड्डियां गला रहा है, उसके लिए हम.कहेंगे वो पूछता नहीं। है कोई बात। "कहते हुए सुषमाजी ने पास में रखी किताब पढनें के लिये उठायी कि तभी रीटा और रोहित (शीलाजी के बेटे बहु)"मां आज शाम को हम मौसीजी और आप को लेकर कही बाहर घूमने चलेंगे, आप तैयार रहना। रीटा तुम तब तक पालक के पकौड़े तल दो, मौसीजी अभी हम मार्निंग वाॅक से आ रहे थे तो ताजी पालक उठा लाया, मां को बहुत पसंद है पालक के पकौड़े। आपको कुछ पसंद हो तो रीटा को बताना वो अरेंज कर देगी। चलो आप लोग बैठो नाश्ता करो मैं ऑफिस की तैयारी करता हूं। "कहते हुए रोहित कमरे से बाहर निकल गया, और रीटा किचन की तरफ चल दी।
सुषमाजी ने एक बार शीलाजी को देखा, जिनके चेहरे पर सुषमाजी की बातों का असर आंशिक दिखायी दे रहा था।
दोस्तों, आपने भी इस स्थिति को करीब से महसूस किया होगा , या देखा होगा । बेटियों से प्यार होना गलत नहीं है लेकिन इतना कि वो मोह का रूप ले ले और सच्चाई से आप मुंह मोड़कर आप बेटों के प्यार, मेहनत, और दैनिक जीवन में किये गये प्रयासों को नजरअंदाज करके सिर्फ किवदंती पर ही चलते चले जायें, ये कहां तक ठीक है ?आपकी इस विषय में क्या राय है अवश्य बताइयेगा।
