आज़ादी- इक जिम्मेदारी
आज़ादी- इक जिम्मेदारी
गूंजी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है
जन जन को आह्लादित कर दे
ऐसा भाव जगाना है।।
देशप्रेम का घृत हो जिसमें
भाईचारा बाती हो
जिसकी हर लौ की लहरें
गीत प्रेम का गाती हों।
ऐसे लौ की धारा से
जीवन रोशन कर जाना है।
गूंजी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।
आवाज़ उठे आज यहां जो
भारत की पहचान बने
भूले बिसरे इतिहासों का
फिर नूतन सम्मान बने।
अपने उन इतिहासों को
फिर इक बार बताना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।
वार करे जो व्यभिचार पर
अनैतिकता पर, भ्रष्टाचार पर
काटे बेड़ी अवसादों की
वार करे जो जातिवाद पर।
एक सूत्र में देश पिरोए
ऐसी ललकार जगाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।
रोटी-कमल प्रतीक बना था
आज़ादी के दीवानों का
जीवन रण संगीत बना था
आज़ादी के परवानों का।
उनके उस दीवानेपन पर
नित नित शीश झुकाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।
भूख, गरीबी, बेकारी पर
जीवन की हर लाचारी पर
मूलभूत सुविधाएं सारी
गिरती शुचिता, बीमारी पर।
कुव्यवस्था जो भी फैली है
उनको दूर भगना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।
कदम कदम पर ताक लगाए
कितने हैं शत्रु सूंघ रहे
खंडित भारत की चाहत ले
सालों से हैं ऊंघ रहे।
ऐसे सारे शत्रु को हमको
चिर-परिचित नींद सुलाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।
झूठे वादे तड़पाते हैं
लोभ-प्रलोभन बहलाते हैं
कठपुतली जैसा करके
सबका जीवन दहलाते हैं।
ऐसे झूठे आडंबर का
तोड़ हमें समझाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।
आज़ादी उपहार नहीं है
ये इक जिम्मेदारी है
इसके समुचित संचालन में
सबकी हिस्सेदारी है।
आज़ादी के अहसासों को
सबमें हमें जगाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।