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V. Aaradhyaa

Inspirational

4  

V. Aaradhyaa

Inspirational

आज उनका कोई और प्रोग्राम है

आज उनका कोई और प्रोग्राम है

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"बहू! लगता है आज जमकर बारिश होनेवाली है। तुम ऐसा करो कि पकौड़े तल दो। मुन्ना को आलू के पकौड़े पसंद हैं। तुम्हारे ससुर को प्याज़ और बैगन के पसंद हैं। मेरे लिए बाकी पकौड़ों के साथ गोभी के पकौड़े भी तल देना। मुझे बहुत पसंद है!"

शीला जी ने अपनी बहू गरिमा से हुलसकर कहा। गरिमा मुस्कुरा पड़ी। इस घर में जब भी घर में पकौड़े बनते हैं अम्मा जी अपने पसंद का पकौड़ा जरूर बनवाती है। उन्हें कितना ख्याल है अपनी पसंद का, यह बात घर में सब जानते थे।


गरिमा को सोच में डूबे हुए देखकर शीला जी ने टोका


"अरे! कहां खो गई हो बहू मैंने कह दिया ना बैगन आलू और प्याज के पकौड़ों के साथ दो चार पकौड़े गोभी के भी बना देना..... बस्स्स...मैं खुश!"


गरिमा को अपनी सास की एक आदत बहुत पसंद थी। उम्र को तो कभी सोचती भी नहीं थी।

उनके लिए उम्र एक ऐसी चिड़िया है जो अगर एक बार उड़ गई तो वापस नहीं आती है। तब अपने अंदर की जिंदादिली को अपने स्वभाव से ही जिंदा रखना होता है और वह अपने स्वभाव में इतना बचपना रखती थी कि उनमें जीवन जीने की उमंग बची रहती थी। साथ ही जो भी उनसे मिलता था उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकता था। यहां तक कि शादी के शुरुआती दिनों से ही उन्होंने अपनी ज़िंदादिली से अपने पति राघव जी को भी एकदम अपना दीवाना बना रखा था। हाँ... यह बंधन प्रेम का था, अपनेपन का था। छलकपट का लेशमात्र भी नहीं था इसमें।

कुछ लोगों का दिल इतना साफ और भोला होता है कि उनके चेहरे पर भी एक भोलापन, बच्चों जैसी मासूमियत रहती है। शीला जी भी कुछ ऐसी ही थीं। खुलकर हँसती, अपने मन की बात बताते हुए जरा सा भी नहीं झिझकती। यहां तक कि किसी की कोई बात बुरी लगे तो उसे बताने से भी नहीं हिचकती थीं। इसके विपरित अगर शीला जी की किसी बात से किसीका दिल दुखता तो माफी मांगने से भी नहीं पीछे रहती थीं।


ज़ब गरिमा इस घर के बड़े और लाडले बेटे अनिमेष की दुल्हन बनकर आई तब शुरु शुरू में उसे अपनी चुलबुली और बिंदास सास से मिलकर अच्छा तो लगा था पर उम्र से परे उनकी चंचलता और भोलापन उसे समझ नहीं आई थी


आज तक की देखी दिखाई और सुनी सुनाई सास की छवि से शीला जी की छवि तो बिलकुल ही मेल नहीं खाती थी।


गरिमा अचंभित थी कि सास ऐसी कैसे हो सकती है...?


मां को बताया तो उन्होंने भी गरिमा को सावधान करते हुए यही कहा कि,


"शुरू शुरू में बहू के सामने अच्छा बनने का नाटक कर रही होगी। बाद में अपना असली रूप दिखाएगी। तुम उनसे थोड़ा सावधान रहना! "


पर... जैसे जैसे वह अपनी सास को समझती गई उसे उनका साथ अच्छा लगने लगा था। जीवन के संघर्षों के बीच भी हमेशा धैर्य बनाए रखकर चेहरे पर मुस्कुराहट सजाए रखनेवाली प्यारी सी सासु माँ अब गरिमा की फेवरेट बनती जा रही थी।उसे पता ही नहीं चला कि क़ब वह अपने सास से इतना प्यार करने लगी थी और एक तरह से उन्हें अपना आदर्श मान चुकी थी।


यह कहानी है ....

एक सास बहू की जोड़ी की जो आम सास बहू की तरह ही हैं। लेकिन दोनों ने अपने अपने मन की सुनी और एक दूसरे को दिल से अपनाया है।शीला जी ने जो अपने जीवन के पिछले अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है। और गरिमा जो ज़िंदगी के संग पईयां पईयां चलकर सीख रही है, वह अनुभव एक दूसरे को बताते हुए आपस में एक प्यारे से रिश्ते में बंधती जा रही हैं। अब एक दूसरे के साथ बहुत सही तरीके से सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रहीं थीं।


अब तक अनिमेष भी समझ चुका था कि आज शाम में बहू और सास का कुछ अलग कार्यक्रम है इसलिए ऑफिस से आने के बाद वह भी इनके पकौड़ा पार्टी में शामिल हो गया था।

एक दिन अकेले में जब सास बहू दोनों साथ बैठी थी शीला जी ने गरिमा से पूछा कि,


" मैं जो जब तक तुम्हें हक़ से काम करने बोल देती हूँ। तुम्हारे साथ एकदम अनऔपचारिक हो जाती हूँ तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगता? "


तो खुश होकर गरिमा बोली,

" नहीं... माँजी! मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगता। उल्टे मुझे बहुत अपनापन लगता है कि आप मुझसे काम कराती हो। और इस तरह से मैं अपने घर को भी भूल जाती हूँ और इस घर में रहने में मुझे आसानी हो जाती है। सब कुछ बेहद अपना लगने लगता है!

अब सास बहू दोनों जब भी बारिश होती तब पकौड़े और चाय के साथ तो बारिश की बूंदों का मज़ा लेती और हल्की नोकझोंक में उनकी प्यारी सी शाम गुजर जाती।


सास बहू भी माँ बेटी की तरह रह सकती हैं बशर्ते कि उनमें तुलना ना की जाए और उनमें ईर्ष्या के भाव ना जगाए जाएं।



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