अमृत सदृश जल
अमृत सदृश जल
प्रकृति का अनिवार्य उपादान, सतत सर्वदा रहा है पानी।
जीवन-संचालन हेतु अमृत-सरिस लगे बस पानी।।
जल ही जीवन, बिना जल भला, कहाँ जीवन निशानी??
अनिवार्य उपादान प्रकृति का, सतत रहा है पानी।
कोशकिय-जीव-द्रव्य का तीन, -चौथाई बस पानी।
जल बिन निष्क्रिय हों तन अरु मन , जल महिमा-जग जानी।।
स्नान-ध्यान, धोने में जल से, होती है
अनिवार्य उपादान प्रकृति का, सतत रहा है पानी।
फसलों की सिंचाई जल से, सारे जग में होती।
काम बिना जल न चले कुछ वश, सारी दुनिया रोती।।
जल-संरक्षण से सबको ही, होगी नित आसानी।
अनिवार्य उपादान प्रकृति का , सतत रहा है पानी।
तीन-चौथाई जल धरा पर, बाकी पृथ्वी होती।
सूर्य-जलधि योग सेहि वर्षा, है भू-भाग भिगोती।।
जल- व -अग्नि-पर्यावरण संग, खेल लगे नादानी।
अनिवार्य उपादान प्रकृति का, सतत् रहा है पानी।