जल संरक्षण
जल संरक्षण
मानव और प्रकृति
पूरक हैं एक दूसरे के
अधूरे हैं इक दूजे बिन।
बातें बड़ी- बड़ी
काम कुछ नहीं
ज़िम्मेदारी को कोई तैयार नहीं।
फिर कैसे हो जीवन रक्षण ?
कैसे हो जल संरक्षण ?
जितना सबल होगा जल संचयन,
उतना सुरक्षित होगा मानव जीवन।
पर क्या सच में मानव जीवन सुरक्षित है?
शायद नहीं एक भ्रम
हम सुखी हैं, हम ख़ुश हैं।
क्या सही अर्थों में ऐसा है ?
शायद नहीं
अपने ही स्वार्थ ने हमें भटकाया है
अपने ही जीवन को असुरक्षित बनाया है।
सोचते हैं ख़ुद को सुरक्षित !
न मनन किया, न विचार किया
केवल जल संरक्षण का प्रचार किया।
दो चार स्लोगन लिखे
भाषण दिया, पल्लू झाड़ लिया।
बस, क्या यही है हमारी ज़िम्मेदारी !
जितनी देर चाहा जी भर के नहाया
जहाँ दिल आया वहीं पानी गिराया
हाथ में पानी थोड़ा पीया बाकी फैंका
नल खोला तो बंद न किया
गाड़ी धोई तो पाइप न बंद किया
जब ऐसे होंगे प्रयास
तो कैसे बुझेगी
प्यास !
जल संरक्षण का न कोई भाषण काम आयेगा
हर तरफ़ पानी पानी का शोर मच जायेगा
आने वाली पीढ़ी को भी तरसाएगा।
बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियों की नहीं कर बात
बस आम आदमी बदल ले स्वयं को आज।
जब अपने लिए बचाएँगे जल
जल संरक्षण अभियान शुरू हो जायेगा तब।
हर व्यक्ति का प्रयास
भर सकता है जल संरक्षण का सागर
फिर डुबकियाँ लगाओ हर पल जी भरकर।
हर उस कार्य का कर दो त्याग
जो जल में लगाता है दूषित आग।
अपनी सोच को केवल इस ओर लगाओ
जल को शुद्ध व स्वच्छ बनाओ।
इसी से होगा जीवन सुरक्षित
जीवन दर को मिलेगा संरक्षण।
जल संरक्षण को बना लें अपना स्वार्थ
स्वार्थ सिद्ध के हों फिर पूर्ण प्रयास।
नई क्रांन्ति का भाव फिर आ जायेगा
जीवन नव स्फूर्ति पा जायेगा।
'जल संरक्षण ' का न उठेगा सवाल
जीवन में न रहेगा कोई मलाल।
जल व जीवन दोनों सुरक्षित हो जायेंगे
स्वर्ग का आनंद फिर यहीं पायेंगें,
स्वर्ग का आनंद फिर यहीं पायेंगें।