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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

स्मृति उत्सव की

स्मृति उत्सव की

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सुख-दुख तो अनुभूति हैं मन की,

एक सीमा तक ही इनकी करें फिकर।

उचित कर्म खुश रह के करें बस,

फल तो स्वीकारें अनासक्त भाव रख कर।


सुखकर यदि परिणाम मिला तो,

हमारी सब कार्य योजना रही सफल।

चूक रही कहॉ॑ करें समीक्षा ,

व्यवधान थे क्या जो मिला न

इच्छित फल।

तैयार सदा रखें वैकल्पिक योजना,

संभव है परिवर्तन में हो बेहतर ही हल।

आत्म-विश्वास सदा रख ऊॅ॑चा,

कभी असफलता का लेश न मन में

लाएं डर।

सुख-दुख तो अनुभूति हैं मन की,

एक सीमा तक ही...


शिक्षण हेतु मिलीं कक्षाएं,

बड़ी भिन्नता के थे उनके

अपने थे स्तर।

भिन्न प्रकृति के थे विद्यार्थी,

अभिभावकों के भी अलग-अलग

स्तर।

स्तर के अनुरूप योजना,

कहीं तो प्रभावी तो कहीं पर 

कम ही असर।

चलना ही नाम जिंदगी का है,

कभी हार न मानना है कहीं भी

थक कर।

सुख-दुख तो अनुभूति हैं मन की,

एक सीमा तक ही..


परिवार संस्कारों की कार्यशाला,

अभिभावक समस्या बच्चों से बढ़कर।

उनके अहम भयंकर बाधा,

उन पर परिवर्तित योजनाएं भी हों बेअसर।

अर्द्धवार्षिक फल पर मिला जो नोटिस,

मन को व्यापी एक तीव्र फिकर।

हुई मंत्रणा मित्रों के संग, एक से एक

सांन्त्वनाएं- सुझाव मिले बढ़ -चढ़कर।

सुख-दुख तो अनुभूति हैं मन की,

एक सीमा तक ही...


कुछ अभिभावक मजबूर दिखे थे,

जो थक चुके थे बच्चों को समझाते।

संवादहीनता दिखी कहीं संबंधों में,

और कहीं मिलीं बस थोथी सी बातें।

बच्चा केन्द्र -बिन्दु है मध्य हमारे,

अब दिन कार्य हित और चिंतन

हित रातें।

बच्चे अभिभावक बने एक दूजे के

सहायक ,

तब सकारात्मक दिखा असर।

सुख -दुख तो अनुभूति हैं मन की,

एक सीमा तक ही...


वार्षिक परीक्षा परिणाम जब आया ,

तो सबके सब चेहरे चुके थे खिल।

शिक्षक- विद्यार्थी- अभिभावक

सहयोग योजना, यहाँ रही थी पूर्ण सफल।

अगले वर्ष के वार्षिकोत्सव पर मिली प्रशंसा,

आए थे प्रशंसक दल के दल।

जब हर फल के ही हैं मूल में बच्चे ,

तो फिर फूल जाएं कैसे हम इतरा कर।

सुख-दुख तो अनुभूति हैं मन की,

एक सीमा तक ही..


अविस्मरणीय स्मृति है उस उत्सव की,

जिसे सके ना मन कभी भी भूल।

स्मरण योग्य वे कदम - सुझाव भी,

जो हैं इस खुशी का सचमुच ही मूल।

ऐतिहासिक स्मृतियाॅ॑ अति सुख देती ,

दण्ड भी मिलता जब हम करते हैं भूल।

सीख सदा लेनी अनुभव से,

हर्षित-दुखित अधिक न हों किसी

सुख-दुख पर।

सुख-दुख तो अनुभूति हैं मन की,

एक सीमा तक ही...



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