परिस्थितियाँ
परिस्थितियाँ
परिस्थितियाँ इंसान की
कभी भी समान नहीं होती
हिम्मत से आगे बढ़ना पड़ता है।
जब पति-पत्नी दोनों ही हों सरकारी कर्मचारी
परिस्थितियाँ नहीं रहती गुलाम हमारी
हम होते है उनके गुलाम
हर हाल में करते है सब काम।
सन् 1999 में बेटा हुआ पीलिये का शिकार
पति भी दौरे पर बम्बई से बाहर
गौरेगाँव में थी रिहायश
स्कूल था के वि भांडुप।
बीमारी के कारण था बड़ा कमजोर
ऊपर से पक्के पैपरों का जोर
बचाना चाहती थी एक साल
स्कूल जा कर देखे क्या हो हाल।
बस से ले जाना था दुखदाई
टैक्सी का भाड़ा महंगा भाई
सोचा स्कूटर ही चलाया जाए
बेटे को भी साथ ले जाया जाए।
माँ थी, बच्चे के कारण शक्ति जुटाई
रोज 35 किलोमीटर स्कूटर दौड़ाई
लक्ष्मीबाई के नाम से स्कू
ल में बड़ाई
बच्चे के पैपर व नौकरी कर पाई।
किसी ने सच ही कहा है
अगर सच्चे मन से करो काम
तो सारी कायनात करती है मदद
हर परिस्थिति आ जाती है अपनी हद।
वो एक महीने की मेरी परेड
रही इतनी सफल कि हो गई ट्रेंड
कहीं भी स्कूटर चला लेती तेज
कितनी भी भीड़ हो विदाऊट अफरेड।
आज सोचूं तो घबराहट होती है
पर जवानी की बात कुछ और होती है
छोटे को आगे खड़ा कर कमर से बाँधती
बड़े को पीछे बिठा स्कूटर चलाती।
कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आई
भगवान ने हर बार कृपा दिखाई
समय किसी के रोके कहाँ रूका भाई
हर बार हर परिस्थिति पर विजय पाई।
इन्ही अनुभवों ने बम्बई में जीना सिखाया
हर परिस्थिति पर पार पाया
आज भी हिम्मत से कर लेती हूँ काम
हमेशा प्रभु पर रखा विश्वास।