प्रेरणा
प्रेरणा
चाहे बदले ज़माना चाहे बदले दुनिया सारी,
सदा नेक रहना और चुनना ईमानदारी।
सीखे सद्गुण बड़ों से उन्हें छोटों को सिखाएं,
हुए जिनसे प्रेरित वे सबको को सिखाएं।
परिवार है हम सबकी ही पहली पाठशाला,
संस्कृति संस्कार बनाती है जिसे हमने ढाला।
हम दिल से निभाएं-निभाएं न डर में,
ईमानदारी से संस्कार सब सीखते हैं अपने घर में।
जो हमको सिखाना था खुद वह करके दिखाया,
जो सद्परिणाम देखा वहीं मन को था भाया।
वाणी से नहीं बल्कि आचरण - व्यवहार से सिखाएं,
सीख चुके है उसे निज व्यवहार में भी लाएं।
अनुकरण करने का सिद्धांत अक्सर सरल होता है,
उपदेश देना सरल पर कठिन अमल होता है।
कर्म-वचन-मन एकरूप हो जाएं,
निरासक्ति भावना हृदय में और त्याग हो अपने कर में
हम दिल से निभाएं-निभाएं न डर में, ईमानदारी से संस्कार सब सीखते है अपने घर में।
जिसे हम सिखाना चाहते हैं उसे खुद सीख जाएं,
इस ज्ञान को निज आचरण में भी लाएं।
जिस भावी सुधार की मन में योजना बनाएं,
शुरुआत करेंगे खुद से-विश्वास सबमें जगाएं।
आपके व्यवहार पर है लोगों की पैनी नजर,
आप पर अपेक्षित सुधार का स्पष्ट दीखेगा असर।
लाभ तो हम खुद के लिए ही चाहें, और सब ही यह चाहें त्याग दे कोई दूसरा ही देवे कर।
हम दिल से निभाएं-निभाएं न डर में, ईमानदारी से संस्कार सब सीखते हैं अपने घर में।
सद्गुण ग्रहण की सतत् प्रेरणा ले, होती शुरुआत खुद के ही घर से।
प्रेरणा आती स्वत: से ही,
आये नहीं न थोपने से न ही किसी डर से।
प्रेरित भी हम कर पायेंगे हम,
खुद में हुए सकारात्मक बदलाव से।
प्रेरणा भी स्व स्फूर्त ही होगी,
ये न होगी कभी किसी भी दबाव से।
उचित बदलाव देगा आपको सही दिशा,
जो होगा सबकी ही नजर में।
हम दिल से निभाएं-निभाएं न डर में,
ईमानदारी से संस्कार सब सीखते है अपने घर में।