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Renuka Chugh Middha

Inspirational

2.5  

Renuka Chugh Middha

Inspirational

जिन्दगी कुछ यूँ ही ...

जिन्दगी कुछ यूँ ही ...

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जिन्दगी कुछ यूँ ही ...

चलती रही खिलखिलाती सी , 

मुस्कुराती सी .... 

जीवन राह में फूल बिखराती सी , 

जीवन पथ की डगर पर ,

नये सपनों को उगाती सी , 

कैसे पैदा होता है नव-अंकुर ,

मिट्टी की नर्म गोद से ? यूँ ही ... 

नई आशाओं , उमंगों से जीवन महकाती हुई सी ...

जिन्दगी कुछ यूँ ही ... है कभी थक हार बैठ ,

कही सूनी निगाहों से मंज़िलों को दूर से ....तकती हुई सी मन मे विषाद लिये , 

अवमानना से ग्रसित हो ,

हर दिन दूसरों पर गुर्राती हुई सी .... 


भर कभी कर्तव्य भाव से , कभी 

यूँ ही राह में ...... फैकें दूसरों के ,

मन -व्यसन के कूड़े को बीनती हुई थी ... 

कहीं ..... कोहरे मे लिपटी खामोश 

मगर अचल पहाड़ियों सी , 

कभी लहरों सी चचलं उछल -उछल 

ग़ोश मे आके समाने सी , 

जिन्दगी कुछ यूँ ही ... तो है , 

साईकिल के दो पहियों सी ... सुर-ताल में , 

जिन्दगी के सफ़र में सन्तुलन से आगे बढ़ती सी , 

जिन्दगी इक लय है .... इक रिदम में समायी हुई सी .... 

हौसलों से आगे ही आगे जीतने की राह पे बढती हुई सी ... 

फूलो सी मुस्कुरा , कई रगों से बहार ला ..

जीवन की धुन पर कठोर पलो में भी मुस्कुरा दे 

जिन्दगीं कुछ यूँ ही ..... तो है , 


मासूम बच्चे की जैसे अनजान बेफ़िक्री में किलकारियाँ मारती हुई सी ,

किसी नवयौवना की आंखो मे भरे ...मासूम इन्द्रधनुषी ख़्वाबों सी ,

कहीं कशमाकश ,कही सधे पैरो पे चलती सी जिन्दगी , 


जिन्दगी कुछ यूँ ही .... देख के ये सारी दुनियादारी फिर से ...

इक नई कविता रचती रही !! 



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