गुरु महिमा
गुरु महिमा
मुझे गुरु चरणों में शरण दे दोगे तो क्या होगा,
भटकती सूरत को पवित्र बना दोगे तो क्या होगा।।
ना समर्थ, तुम सदृश कोई आया दृष्टि में मेरी
तेरी शरण में इसलिए आई हूं बचा लोगे तो क्या होगा।।
सुना है तुम्हारे द्वार से कोई खाली नहीं जाता
मेरी झोली भी भर दोगे तो क्या होगा
तुम तो पारस लोहे को कंचन बना दोगे तो क्या होगा
जब मैं उस योग्य भी नहीं तो मेरा क्या होगा
बहुत बीती जिंदगी रही थोड़ी वह भी जाने वाली है
इस अंतिम श्वास में भी अपना लोगे तो क्या होगा।