अरसे से लोहे के चने चबा रहे हैं अरसे से लोहे के चने चबा रहे हैं
तेरी शरण में इसलिए आई हूं बचा लोगे तो क्या होगा।। तेरी शरण में इसलिए आई हूं बचा लोगे तो क्या होगा।।
हाथों में लोहे का भारी घन और उसकी चोट तुम्हें सुनाई नहीं देती, हाथों में लोहे का भारी घन और उसकी चोट तुम्हें सुनाई नहीं देती,
दूर किया फिरंगियों को हँसते हँसते बलिदान दिये दूर किया फिरंगियों को हँसते हँसते बलिदान दिये