माँ हूँ मैं...
माँ हूँ मैं...
नौ महीने सांसों और धड़कनों को जिया है,
भगवान ने मां को अनुपम ये वरदान दिया है।
संभाला था हर पल वो सपना
जीवन साकार करने को अपना
छोटी छोटी चीजों में गुम हो जाती थी
उनमें अपने शिशु को पाकर मुस्काती थी।
बुनती थी हर दिन सपनों के कोमल पल
कब गोद में लेकर निहारेगी अपना वो कल।
आई वो घड़ी जब किलकारी हुई गुंजायमान
प्रभु में साकार किया औरत होने का सम्मान।
अपने बचपन को मुस्काते देख भर आईं आंखें,
आंचल में छुपा दूध और ममता की फैला दी बाहें
अपने लहू को जीवंत सांसें देकर गोद में उठाया,
ममतामई कंठ ने लोरी से लाल को लुभाया।
नन्हे हाथों से उसने अपनी मां को जब छूआ,
मां को मानो तीनों लोकों का सुख मिल गया।
खुशी के आंसू की गंगा में शिशु था नहाया,
मां ने अपने कल को था सीने से लगाया ।