दिसम्बर
दिसम्बर
तुम्हारी यादों का मौसम,
गोया की,
दिसम्बर का ये सर्द मौसम !!
आने पर जिसके,
जम जाता है वक़्त भी,
जैसे की
बन बर्फ़ जम जाती हों,
घास के पत्तों पर बिखरी ,
वो ओस की बूँद!!
हर सुबह जिसकी,
ओझल कर देती है
ज़हन से सब कुछ
एक तुम्हारे ख़्याल के सिवा ,
रास्तों में पसरें
कोहरे की मानिंद!!
जिसकी सर्द हवाओं के
छुअन से,
सिहरन सी दौड़ जाती है,
मेरे तन-बदन में,
यूँही
जैसे
हलचल मचाती है अक्सर
तुम्हारे यादों की वो लहरें,
मेरे तन-मन में !!
ले के आता है जो
हर बार
अपने साथ
अहसासों की गठरी&nb
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भरे होते है जिसमें
अहसास तुम्हारे
कुछ नए तो कुछ पुराने,
अक्सर याद दिला देते हैं जो मुझे
गुज़रे हुए कल की !
चंद ही सही!
मगर,
तुम्हारे साथ बिताये हुए
हर एक सुनहरे पल की!
दिसम्बर की तरह ही
बीत जाता है ये मौसम भी
मगर
गुज़र नहीं पाता है
तुम्हारी यादों का कारवाँ कभी भी,
लौट आता है जो पुनः
नासूर बन चुकी मेरी तन्हाई
के ज़ख़्मों को कुरेदने,
जिनसे रिसतीं रहती हैं
तुम्हारी यादें रात भर
ज्यों
आसमाँ से टपकतीं है
ओस की बूँदें
उन सर्द रातों में
रात भर !!