पिता हमारे भाग-3
पिता हमारे भाग-3
अपने कंधे बैठते गॉव नगर मोहल्ला की चौराहों गलियों में
यही तो है मेरी दुनियां भर की दौलत दुनिया।
जहाँ ये मेरी फुलवारी की खुशबू इसके होने
से मेरा घर आँगन गुलशन गुलज़ार।
मेरे पैरों में पैजनियाँ हाथों में कड़ा देवो का आशीर्दवा जहाँ भी
मिल जाता अवसर मैं रहु सलामत की मांगते दुआए आशिर्बाद!!
पिता हमारे मैं उनके भाव भावना का प्रवाह उनकी संतान।
जब भी मैं घर आँगन में बचपन की अठखेली करता
मेरे पैरों की पैजनिया की छिडति जब तान !!
बड़े गर्व से माँ से कहते ठुमुक़ चलत हमारे घर आँगन में कान्हा का बचपन दसरथ का राम।
बचपन की शोखी और शरारत नहीं करती परीशान जब कभी हो जाऊं चुप शांत।
व्यकुल हो जाते पूछते क्यों बंद हुयी शरारत क्यों चुप है नटखट नादान।
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा जाते मेरी खुशियो भविष्य की करते गुहार।
ईश्वर अल्लाह जीजस गुरुओ से अपनी हर भक्ति की शक्ति का मांगते वरदान ।
यशस्वी दीर्घायु हो बलवान मेरी संतान।
वैद्य हकिम को ले जाते व्याकुल हो जाते पल भर में सारी दुनियां को मेरी
खुशियों की खातिर लाने की हर जोर जतन कर जाते ।
नज़र लगे ना किसी काला टीका लगवाते पिता हमारे मैं उनकी सन्तान ।
पिता की बाँहों के झूला ईश्वर के दामन दामन वरदान जमी आसमान की उड़ान ।
जैसे जैसे दिन बीतते मेरा बचपन मेरी शरारतें उनकी खुशियां तमाम उनकी मुरादों का लौ चिराग।
बड़े प्यार से बड़े दुलार से अपने चाहत अरमान का
माँ की ममता दुलार का अपने अभिमान का नाम दिया ।
माँ बाप का दिया नाम दुनियां मे मेरी पहचान बना।
मेरा बेटा यैसा हो वैसा हो दुनियां कोई दूजा हो ।
नए चाँद और सूरज दुनियां का पथ
प्रदर्शक युग का प्रेरणा पुंज हर चाहत की ऊँचाई का भरोसा हो।
लम्हा लम्हा सुबह शाम बीतता दिन और रात गुजरते ।
हर बीते लम्हों को मेरे संग अपनी चाहत की लम्हा जीते आने वाले लम्हों को खुद प्रेरक परिणाम ।
की हर सुबह शाम का ख्वाब संजोते वो पिता हमारे मैं उनकी संतान।
धीरे धिरे पुनशवन नामकरण चुराकर्ण के समय संस्कर की संस्कृतियों से
संस्कारित मैं भाग्य भगवन का मनचाही वरदान की संतान।
जरा सी हिचकी खांसी पे हो जाते परेशान।
सारे जतन करते अपनी छमता में जैसे भी हो मैं मेरी रक्षा और
सुरक्षा में उनका धीर धैर्य ध्यान वो पिता हमारे मै उनकी सन्तान।
एक दिन बोले माँ से आज वसंत है पटरी पूजा माँ सरस्वती का बच्चों का वंदन अभिनन्दन है।
गांव के हर घर नेवता भेजवाया बड़े धूम से मेरी पटरी पूजा का आयोजन करवाया !
मेरी स्वर सरस्वती की साधना का बचपन आया।
अगले दिन ही मैंने थमी उनकी ऊँगली चल पड़ा साथ पिता हमारे मै उनके सपनो का संसार ।
साँसे धड़कन मै उनकी संतान ।
लेकर पहुचे गाव की पाठशाला बोले गुरु आप श्रेष्ठ महान।
आपकी कृपा आशिर्बाद से कितनो ने मंजिल पायी और बने महान ।
मेरे यह लाडला है मेरी दूनिया का हैँ रोशन चिराग ।
अपने ज्ञान ज्योति से मेरी नन्ही ज्योति को परखे जाँचे और निखारे ।
बन जाए प्रज्वलित मशाल दूर करे मेरी दुनियां का अँधेरा कुल का रखे मान।
युग प्रवाह की प्रेरक प्रेरणा का हो परम् प्रकाश हो मेरा लाडला मैं इसका पिता बुनियाद।
निर्भय निर्भीक सच्चा साहसी सत्य सार्थकता की शक्ति माँ के दूध के कर्ज के फर्ज का हो फौलाद।
कमजोर की ताकत हो असहाय की हो आवाज़ धर्म कर्म का गामी हो परम् प्रतापी का हो पुरूषार्थ ।
मैं पिता मेरी चाहत हो मेरी ऐसी संतान।
शिक्षा दीक्षा में ताकत और तरक्की की मंज़िल का आधार।
इसी शिक्षा दीक्षा की दरकार जिससे बने पराक्रमी मेरी संतान।
कुल गौरव हो राष्ट्र समाज के अस्तित् का अस्तमत हो दुनिया को नाज़ हो औलाद।
तुम्हारी दुनिया में बेमिशाल हो यही है लक्ष्य हमारा पथ प्रतिज्ञा हमारी।
गुरुवर ने बड़े ध्यान से सुनी मेरे बापू की हर बात छोड़ी लंबी साँस।
बोले मैं अपनी शक्ति ज्ञान से जो भी सम्भव होगा से
शिक्षित दीक्षित करूँगा तुम्हारे बेल बंश को।
पृथी सागर गहराई और ज्ञान की ऊंचाई का दूँगा आकाश ।
मेरा दाखिल पिता गुरु की आशाओ की ध्वनि प्रतिध्वनि के पथ पाठशाला में हुआ।
मेरे विद्यार्थी जीवन का आगमन हुआ माँ बाप की उम्मीदों का लौ रौशन हुआ ।
मेरे हर कदमो की आहट की आवाज़ को समाज ने सुनना बुनना गुनना शुरू किया।
हर कदमों के निशान से मर्म कर्म परिणामों के दुनिया के मंथन का सफर शुरू हुआ।
