जैसा बोया वैसा काटा
जैसा बोया वैसा काटा
जो जैसा फ़सल कर्म कि
बोता
उपज वहीं काटता
मुठ्ठी बांधे
जन्म लेता!!
हाथ पैसारे काया छोड़
कर्मो कि थाती कि शय्या
पर जाता!!
सृष्टि का मर्म यही है
आदि
अनंत सत्य यही है
जो आया
वह जाता है!!
फिर काल समय वक़्त
कि
गति निरंतर मे नव नव
प्रभात आ जाता है!!
कल का सूर्योदय अतीत
हो
जाता है सिर्फ सूरज के
रहने
ना रहने कि गर्मी नरमी
सौर्य
कर्म पराक्रम रह जाता है!!
काल वक़्त समय टाइम कि
प्रवृति प्रकृति मे मौसम ऋतुए
आती जाती ग्रह राशि कि गति
काल संग ही चलता जाता!!
छः ऋतुए मौसम चार वर्ष
दर
वर्ष आता जाता हर्ष
विसाद
किस्मरण याद दे
जाता!!
आते जाते समय काल
वक़्त कि परम्परा मे जाने
कितने युग आए और
चले
गए!!
अब युग वर्तमान से अतीत
इतिहास होता गुरता जाता!!
स्मरण याद मिलने और
बिछड़ने कि सुख दुःख कि
गम ख़ुशी कि जाने कितनी
थाती है!!
नव काल समय का आगमन
आशा विश्वास का उम्मीदों का
नव चेतन काल समय जागरण
नव वर्ष कि आती बाती!!
नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
