शायर की चाहत
शायर की चाहत
मेरी बंजर भूमि में बहने वाली एक अकेली अमृत तूल्य सरिता हो तूम।
मैंने लिखा जो अपने लिए वो सबसे प्यारी कविता हो तूम।
मैं हार गया सबकुछ ! तेरे सिवा चाह नहीं है अबकुछ !
रिश्ते - नाते तोड़ लिया मैंने मतलबी दुनिया से,
तेरा साथ मिला तो पा लेंगे अभी भी बहुतकुछ !
तुझपे ही टिकी हैं मेरी उम्मीदें,आशाएं और भी सबकुछ।
तू ही मेरी मुस्कान ! तू ही मेरी दुनिया जहान।
पुरा पढ़ न सकूं वो किताब हो तूम।भटकते हुए मुसाफिर की तलाश हो तूम।
मेरे सपनों और आशाओं की अपरिमित आकाश हो तूम।
तू क्या हो मेरे लिए वो खुद से ही पुछ लो !
मगर मेरे लिए 'खासों' में भी खास हो तूम।
खिल जाता हूं मैं, बस तेरी एक मधुर मुस्कान से।
रोज खरीदता हूं तेरे लिए यादगार तोहफ़ा अपनी चाहत की दुकान से।
टूट गया हूं, मैं ! मगर टूटकर बिखरना अभी बाकी है।
तेरा साथ मिले अगर ' मेरे साथी' तो जुटकर निखरना अभी बाकी है।
न ' तेरे सिवा 'पाने की खुशी है कुछ, न खोने का ही कुछ गम है।
मेरी हर मर्ज की तू अचूक मरहम है।।
मैं तूझे,तू मुझे जब कुबूल है।
तो दुनिया क्या कहेंगे ये सोचना भी फिजूल है।
तू मेरी, मैं तेरा बन जाऊं।तू चित्र बन जा,मैं चितेरा बन जाऊं।
मैं कवि हूं, संगीत की नायिका है तू। आ मेरे गले में उतर जा !
साथ मिलकर गुनगुनाएं प्रेम -खुशी के गीत हरपल।
खुशियां बिखेर दें औरों के आँगन में भी साथ मिलकर मैं और तू।