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अर्पण कुमार की कविता 'केंद्र'

अर्पण कुमार की कविता 'केंद्र'

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केंद्र / अर्पण कुमार केंद्र में रहना किसे अच्छा नहीं लगता कौन नहीं चाहता 'शो-स्टॉपर' बनना दुनिया की फैशन -परेड में हाशिए से आप आगे बढ़ते जाएँ केंद्र आपके पास आने लगता है बस बढ़ना ज़रूरी है और याद रखना अपने आरंभ बिंदु को भी क्योंकि दुनिया का कितना ही ताक़तवर व्यक्ति कोई क्यों न हो वह हरदम केंद्र में बना नहीं रह सकता जिसे केंद्रबिंदु कहा जाता है दरअसल वह किसी स्थिर ज्यामितीय संरचना का केंद्र नहीं होता... उलटे वह इस परिवर्तनशील  समय और दुनिया में स्वयं तेजी से बदल रहा होता है वह पृथ्वी की तरह अपनी धुरी पर घूम रहा होता है और दूर किसी शक्ति पुंज के चक्कर भी लगा रहा होता है केंद्र में रहना, सत्ता में होना है और सत्ता कब किसी एक की होकर रही है देश और विश्व के सत्ताधीशों को छोड़िए परिवार का मुखिया भी वक़्त के साथ बदलता है घरों के डायनिंग टेबल गवाह हैं इसके .....


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