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मिलाप

मिलाप

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180


नदी निर्वसन

निहारती थी

ख़ुद को

मेरी आँखों में

नदी

काँपती थी

अपने ही लावण्य से

मेरे होठों के पाटों बीच


सारा शहर अनभिज्ञ था

वह नदी

मेरे अन्दर बहती थी ।


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