मिलाप
मिलाप
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नदी निर्वसन
निहारती थी
ख़ुद को
मेरी आँखों में
नदी
काँपती थी
अपने ही लावण्य से
मेरे होठों के पाटों बीच
सारा शहर अनभिज्ञ था
वह नदी
मेरे अन्दर बहती थी ।