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Arpan Kumar

Abstract

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Arpan Kumar

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तलाश

तलाश

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शहर की

अनन्त दीवारों के पीछे

ऐसी ही किसी गली में

(भटक रहा हूँ

जिसमें मैं इस समय)


नदी

बह रही होगी

अपने वेग से

पालन करती

अपनी दिनचर्या का

निष्ठापूर्वक


अनजान

मेरी किसी तृष्णा से

जब सारी गलियाँ

एक सी है

तो फिर

इतनी गलियाँ क्यों हैं


शहर में

कि कोई चाहे तो

नहीं ढूँढ़ सकता

एक नदी

लाख कोशिशों के बाद भी।


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